CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान पुनरावृति नोटस पाठ-8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
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CBSE Class 12 राजनीति विज्ञान पुनरावृति नोटस पाठ-8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

CBSE Class 12 राजनीति विज्ञानपुनरावृति नोटसपाठ-8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन


स्मरणीय बिन्दु-

  • पर्यावरण = परि + आवरण (वह आवरण जो वनस्पति तथा जीवन + जन्तुओं को ऊपर से ढके हुए हैं।)
  • संसाधन = मनुष्य के उपयोग के साधन
  • प्राकृतिक संसाधन :- प्रकृति द्वारा प्रदत्त मनुष्य के उपयोग के साधन
विश्व राजनीति में पर्यावरण की चिंता-
  1. घटता कृषि योग्य क्षेत्र तथा घटती कृषि भूमि की उर्वरता।
  2. घटते मत्स्य भण्डार, जल प्रदूषण के कारण व जल की कमी।
  3. घटते जल स्रोत तथा अनाज उत्पादन, प्रदूषण के कारण |
  4. घटते वनों से जैव विविधता को हानि तथा प्रजातियों का विनाश।
  5. घटती समुद्र पर्यावरण की गुणवत्ता समुद्रीय तटीय इलाकों में मनुष्यों की सघन बसाहट।
  6. बढ़ती वैश्विक तापमान के कारण बढ़ता समुद्र जल तल।
  7. बढ़ता ओजोन परत का छेद परिस्थितिकी तंत्र व मनुष्य के स्वास्थ्य पर खतरा।
पर्यावरण की जागरूकता तथा सम्मेलन-
सम्मेलन का नामवर्षस्थानप्रस्ताव
1. क्लब ऑफ रोम1972रोम‘लिमिट टू ग्रोथ’ (बढ़ती जनसंख्या से प्राकृतिक संसाधनों का विनाश)
2. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण1975रोम
सदस्य देशों के पर्यावरण की रक्षा, कार्यक्रम भूमि गुणवत्ता बरकरार, मरुस्थल का प्रसार रोकना
3. स्टॉक होम सम्मेलन (प्रथम महत्वपूर्ण सम्मेलन)1972स्टॉक होम (स्वीडन)मानवीय पर्यावरण घोषणा, कार्य योजना परमाणु शस्त्रा परीक्षण प्रस्ताव, विश्व पर्यावरण दिवस प्रस्ताव
4. नैरोबी घोषणा1982नैरोबीविलुप्त वन्य जीव व्यापार, प्राकृतिक संसाधन व सम्पदा, समुद्र प्रदूषण के प्रावधान
5. बर्ट लैण्ड रिपोर्ट1987बर्ट लैण्ड‘आवर कॉमन फ्यूचर’ विकास की वर्तमान प्रक्रिया टिकाऊ नहीं।
6. पृथ्वी सम्मेलन1992रियोडी जेनेरो (ब्राजील)(अजेण्डा-21) - जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वानिकी के नियम, पर्यावरण रक्षा, साक्षी जिम्मेदारी टिकाऊ विकास, उत्तर दक्षिण विवाद।
7. विश्व जलवायु1997नई दिल्लीपर्यावरण संरक्षण में सभी वर्ग शामिल परिवर्तन बैठक हों तथा व्यावहारिक सोच हो।
8. क्योटो प्रोटोकाल1997जापानऔद्योगिक देश ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन कम करें
9. ब्यूनस आयर्स बैठक1998अर्जेंटीनाक्योंटो प्रोटोकॉल की समीक्षा, विलासिता व आवश्यकता में अंतर हो।
10. जोहान्सबर्ग पृथ्वी सम्मेलन2002जोहान्सबर्ग (द. अफ्रीका)जल स्वच्छता, वैकल्पिक ऊर्जा, जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण
11. भूमण्डलीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन2007बाली (इंडोनेशिया)
ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन कम, धनी देश गरीब देशों को साफ सुथरी तकनीक दे। जलवायु परिवर्तन कोष बने
जिम्मेदारी साझी, भूमिकायें अलग-अलग-
  1. उत्तरी गोलार्द्ध के विकसित देशों का तर्क - पर्यावरण रक्षा सबकी जिम्मेदारी, इसके लिए विकास कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाना सबका समान दायित्व है।
  2. दक्षिण गोलार्द्ध के विकासशील देशों का तर्क- विकास प्रक्रिया के दौरान विकसित देशों ने पर्यावरण प्रदूषित किया है इसकी क्षतिपूर्ति भी वे ही करें। विकासशील देशां के सामाजिक आर्थिक विकास को ध्यान में रखा जाये।
  3. अमरीका और चीन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाले सबसे बड़े देश है जबकि अफगानिस्तान और मालवी जैसे दश इस सूची में सबसे नीचे आते हैं. इस बीच चीन ने पहली बार ये माना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के मामले में अब वो अमेरिका के बराबर आ गया है. मगर साथ ही चीन ये भी दोहराना नहीं भूला कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से अगर देखेंगे तो वो अमेरिका से कहीं पीछे है. उधर डब्ल्यूडब्लूए संगठन के प्रमुख एमेका अन्योकू ने कहा कि चादर से लंबे पैर फैलाने के नतीजे हम पिछले कुछ महीनों की घटनाओं में देख चुके हैं और वित्तीय संकट से हुआ नुकसान प्राकृतिक संसाधनों को हो रहे नुकसान के आगे कुछ नही रह जाएगा।
साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में तीन प्रयास अंतराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किय गये है :-
  1. रियो घोषणा पत्र (1992) - धरती की परिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए विभिन्न देश आपस में सहयोग करेंगे।
  2. UNFCCC (1992) – इस संधि को स्वीकार करने वाले देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण अपक्षय में अपनी हिस्सेदारी के आधार पर साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ निभाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा करेगें।
  3. क्योटो प्रोटोकॉल (1997):- इसके अंतगत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण तथा भारत-
  1. प्राकृतिक संतुलन की संस्कृति - पीपल, तुलसी, गाय, सांप, बन्दर की पूजा
  2. विश्व पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में भागीदारी
  3. ऊर्जा संरक्षण अधिनियम-2001
  4. पुनर्नवीकृत ऊर्जा प्रयोग बढ़ावा
  5. स्वच्छ इंजन, प्राकृतिक गैस प्रदूषण रहित तकनीक पर जोर (नेशनल आटो - फयूल पालिसी)
  6. बायो डीजल की योजना
  7. परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा
  8. राज्य प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड
  9. क्योटों प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर 2002 में
  10. 2003 के बिजली अधिनियम में पुनर्नवा ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा।
  11. 2005 में जी-8 देशों की बैठक में विकसित देशों द्वारा की जा रही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सजन में कमी पर जोर।
  12. भारत SAARC के मंच पर सभी राष्ट्रों द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा पर एक राय बनाना चाहता है।
  13. भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) की स्थापना की गई।
  14. भारत विश्व का पहला देश है जहाँ अक्षय उजां के विकास के लिए अलग मन्त्रालय है।
  15. कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में प्रति व्यक्ति कम योगदान (अमेरिका 16 टन, जापान 8 टन, चीन 06 टन तथा भारत 01.38 टन।
मूलवासी :- वे लोग जो किसी देश में बहुत पहले से रहते आये हों परन्तु बाद में दूसरे देश के लोग वहां आकर इन लोगों को अपने अधीन कर लिया हो। मूलवासी अपना जीवन विशिष्ट सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक रीति रिवाजों के साथ बिताते हैं।
1975 में मूलवासियों का संगठन World Council of Indiagneous बना। 1980 में उसने अपनी सरकारों से मांग की कि-
  1. मूलवासी कौम के रूप में मान्यता
  2. अन्य वर्गों के साथ समानता
  3. अपनी संस्कृति की सुरक्षा का अधिकार दें।
  4. अपने स्थान व उत्पाद के स्वामी हों।
  5. विकास के कारण विस्थापित न किये जायें।
वर्तमान संदर्भ-
  • वर्ल्ड वाइल्ड फंड (डब्ल्यूडब्लयूएफ) यानी विश्व वन्य प्राणी कोष ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अगर दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों को मौजूदा रफ्तार से ही इस्तेमाल करने का चलन जारी रहा तो अगले तीस साल में इस जरूरत को पूरा करने के लिए दोगुना अधिक संसाधनों की जरूरत होगी।
  • द लिविंग प्लैनेट नामक ताजा रिपोर्ट में पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि प्राकृतिक संसाधनों का यह संकट मौजूदा वित्तीय संकट से कहीं ज्यादा गंभीर होगा. रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि अभी दुनिया का पूरा ध्यान आर्थिक उथल-पुथल पर लगा है मगर उससे भी बड़ी एक बुनियादी मुश्किल हमारे सामने आ रही है औश्र वो है प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी की. इस अध्ययन का तर्क है कि शेयर बाजार में हुए 20 खरब डॉलर के नुकसान की तुलना अगर आप हर साल हो रहे 45 खरब डॉलर मूल्य के प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान से करें तो ये आर्थिक संकट का ऑकड़ा बौना साबित होता है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की तीन चौथाई आबादी पानी, हवा और मिट्टी का बेतहाशा इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा जंगल जितनी तेजी बढ़ नही रहे हैं उससे ज्यादा तेजी से काटे जा रहे है, समुद्र में जितनी तेजी से मछलियां बढ़ नहीं रही है उससे ज्यादा तेजी से मारी जा रही है. डब्लयूडब्लयूए के प्रवक्ता कॉलिन बटफील्ड का कहना है कि आम लोग बदलाव के अभियान में भाग लेकर एक बड़ा अन्तर पैदा कर सकते है।
पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों के अतिरिक्त विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरणीय कार्यकताओ ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कई आंदोलन किये है जैसे :-
  1. दक्षिणी देशों मैक्सिकों, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया, अफ्रीका और भारत क वन आंदोलन।
  2. ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के विरोध में आन्दोलन।
  3. थाइलैंण्ड, दक्षिण-अफ्रीका, इण्डोनेशिया, चीन तथा भारत में बड़े बाँधों के विरोध में आंदोलन जिनमें भारत का नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रसिद्ध है।
संसाधनों की भू-राजनीति :- यूरोपीय देशों के विस्तार का मुख्य कारण अधीन देशों का आर्थिक शोषण रहा है। जिस देश के पास जितने संसाधन होगें उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी।
  1. इमारती लकड़ी :- पश्चिम के देशों ने जलपोतो के निर्माण के लिए दूसरे देशों के वनों पर कब्जा किया ताकि उनकी नौसेना मजबूत हो और विदेश व्यापार बढ़े।
  2. तेल भण्डार :- विश्व युद्ध के बाद उन देशों का महत्व बढ़ा जिनके पास यूरेनियम और तेल जैसे संसाधन थे। विकसित देशों ने तेल की निबांध आपूर्ति के लिए समुद्री मागों पर सेना तैनात की।
  3. जल :- पानी के नियन्त्रण एवं बँटवारे को लेकर लड़ाईयाँ हुई। जार्डन नदी के पानी के लिए चार राज्य दावेदार है इजराइल, जार्डन, सीरिया एवम् लेबनान।
चीन अमेरिका जिम्मेदार-
बटफील्ड ने कहा ‘‘आर्थिक संकट के मामले में हमने देखा है कि अगर नेता चाहे तो वैश्विक स्तर पर वे मिलजुलकर काम कर सकते है और जल्दी कर सकते है, व्यापक संसाधन जुटा सकते है, हम चाहते है कि इसका इस्तेमाल दरसल वित्तीय संकट से भी बड़े और दीर्घकालिक संकट से निबटने में किया जाता है।
  1. विश्व राजनीति के दायरे को बढ़ा दिया गया है, जिसमें गरीबी और महामारी जैसे विषयों के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों जैसे विषयों को भी शामिल किया गया है।
  2. पर्यावरण के ह्रास से उत्पन्न समस्याओं की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित किया है, जिससे आने वाले समय में वैश्विक पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व विकास रिपोर्ट (2006) के अनुसार विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल नहीं मिलता, वहीं साफ-सफाई नहीं है, 30 लाख बच्चे प्रतिवर्ष मौत का शिकार होते हैं।
  4. जैव-विविधता की हानि का कारण भी पर्यावरण का ह्रास ही है।
  5. ओजोन परत में छेद होने से मनुष्य के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।
  6. समुद्र तटीय क्षेत्रों पर प्रदूषण के बढ़ने से समुद्री पर्यावरण की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है।
  7. कृषि योग्य भूमि चारागाहों, मत्स्य भंडार और जलाशयों में भारी मात्रा में कमी आई है।
  8. 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केंद्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुआ, जिसे पृथ्वी सम्मेलन कहा गया।
  9. पृथ्वी सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया।
  10. साझी संपदा उन संसाधनों को कहते हैं, जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। 'वैश्विक संपदा' या 'मानवता का साझी विरासत' कहा जाता है।
  11. सांझी संपदा :- साझी संपदा उन संसाधनो को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे संयुक्त परिवार का चूल्हा, चारागाह, मैदान, कुआँ या नदी। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से है जिन पर किसी एक देश का अधिकार नहीं है बल्कि उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतराष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें ‘वैश्विक संपदा' या ‘मानवता की साझी विरासत' कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल है इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे अंटार्कटिका संधि (1959) मांट्रियल न्यायाचार (1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991) हो चुके है।
  12. वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर भी विकसित एवं विकासशील देशों का मत भिन्न है। विकसित देश इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों में बराबर बाँटने के पक्ष में है। परन्तु विकासशील देश दो आधारों पर विकसित देशों की इस नीति का विरोध करते है, पहला यह कि साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशो की भूमिका अधिक है दूसरा यह कि विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में है। अत: साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में विकसित देशों की जिम्मेवारी भी अधिक होनी चाहिए तथा विकासशील देशों की जिम्मेदारी कम की जानी चाहिए।
  13. पर्यावरण ह्रास का जिम्मेदार कौन है-विकसित देश या विकासशील देश। यह अभी भी प्रश्न बना हुआ है।
  14. कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाड्रो-फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों की मात्रा पर्यावरण में बढ़ती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग की परिघटना में विश्व का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है जो विश्व के लिए प्रलयकारी साबित होगा।
  15. भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है, क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इनका कोई खास योगदान नहीं है।
  16. भारत सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए पर्यावरण के संबंध में वैश्विक प्रयासों में मदद कर रही है।
  17. दक्षिण देशों मैक्सिको, चिली, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, महादेशीय अफ्रीका और भारत के वन आंदोलनों पर बहुत अधिक दबाव है।
  18. बीसवीं सदी की विश्व अर्थव्यवस्था तेल पर निर्भर करती है।
  19. किसी भी देश के 'मूलवासी' आज भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, सांस्कृतित रिवाज तथा अपने खास सामाजिक, आर्थिक ढरें पर जीवन-यापन करना पसंद करते हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
  1. पृथ्वी सम्मेलन-1992
  2. वैश्विक मामलों पर एक विद्वत समूह 'क्लब ऑफ़ रोम' ने 1972 में 'लिमिट्स टू ग्रोथ' पुस्तक प्रकाशित की।
  3. पृथ्वी सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ।
  4. UNEP-संयुक्त राष्ट्रसंघ पर्यावरण कार्यक्रम।
  5. वैश्विक संपदा की सुरक्षा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण समझौते-अंटार्कटिका संधि (1959), मौण्ट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकॉल 1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991) है।
  6. अंटार्कटिक महाद्वीप 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
  7. स्थलीय हिम का 90 प्रतिशत हिस्सा और धरती पर मौजूद स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग, इस महाद्वीप में मौजूद है।
  8. अंटार्कटिका महाद्वीप पर-ब्रिटेन, अर्जेन्टीना, चिली, नार्वे, फ्रांस, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड द्वारा अंटार्कटिका प्रदेश पर अपने वैधानिक अधिकार का दावा करते हैं, परन्तु अधिकांश लोग इसे विश्व संपदा मानते हैं।
  9. आवर कॉमन फ्यूचर नामक बार्टलैंड रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी–1987.
  10. पृथ्वी सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया।
  11. जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार अर्थात यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेशन ऑन क्लाइमेट चेज-UNFCCC 1992.
  12. एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है-क्योटो प्रोटोकॉल।
  13. भारत ने क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए-2002 में।
  14. अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत पर छेद की खोज हुई-1980 के दशक के मध्य में।
  15. उत्तरी गोलार्द्ध-विकसित देश।
  16. दक्षिणी गोलार्द्ध-विकासशील देश।
  17. यू०एन०एफ०सी०सी०सी० (UNFCCC)-यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज।
  18. खनिज उद्योग पृथ्वी पर मौजूद सबसे ताकतवर उद्योगों में से एक है।
  19. विश्व का बाँध विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्द्ध में चलाया जा रहा है।
  20. दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में तुकों से लेकर थाइलैंड और दक्षिणी अफ्रीका तक तथा इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बाँधों को बनाने की होड़ लगी हैं।
  21. खाड़ी क्षेत्र विश्व के कुल तेल उत्पादन का 30 प्रतिशत मुहैया कराता है।
  22. सऊदी अरब के पास विश्व के कुल तेल भंडार का एक-चौथाई हिस्सा मौजूद है।
  23. सऊदी अरब विश्व में सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।
  24. इराक का तेल भंडार सऊदी अरब के बाद दूसरे नंबर पर है।
  25. वे देश जिनमें वन आंदोलनों पर बहुत दबाव हैं-(i) मैक्सिको (ii) चिली (iii) ब्राजील (iv) मलेशिया (v) इंडोनेशिया (vi) भारत।
  26. भारत में बाँधा विरोधी तथा पर्यावरण बचाव संबंधी एक आंदोलन-नर्मदा आंदोलन।
  27. भारत में वन संपदा एवं वृक्षों के हितो में चलाया जा रहा आंदोलन-चिपको आंदोलन।
  28. फिलीपिन्स के कोरडिलेरा क्षेत्र में मूलवासी रहते है-28 लाख |
  29. चिली में मादुशे में मूलवासी हैं- 10 लाख।
  30. बांग्लादेश के चटगांव पर्वतीय क्षेत्र में आदिवासी बसे हैं-6 लाख।
  31. उत्तरी अमरीका में मूलवासियों की संख्या है-3 लाख 50 हजार।
  32. पनामा नहर के पूरब में कुना नामक मूलवासी हैं-50 हजार।
  33. उत्तरी सोवियत में मूलवासी हैं-10 लाख।
  34. आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ओसियाना क्षेत्र के बहुत से द्वीपीय देशों में हजारों सालों से पॉलिनोरीया, मैलनोरीया और माइक्रोनोरीया वंश के मूलवासी रहते हैं।
  35. भारत, दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले मूलवासियों की आदिवासी या जनजाति कहा जाता है।
  36. वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल का गठन हुआ-1975 में।

एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तरपाठ-8पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन


1. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारो का क्या कारण है? निम्नलिखित में सबसे बेहतर विकल्प चुनें।
(क) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(ख) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासी के लिए जरूरी है।
(ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।
(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर- (ग) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।

प्र०2. निम्नलिखित कथनों में प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ। ये कथन पृथ्वी सम्मेलन के बारे में हैं:
(क) इसमें 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया।
(ख) यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में हुआ।
(ग) वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दो ने पहली बार राजनीतिक धरातल पर ठोस आकार ग्रहण किया।
(घ) यह महासम्मेलनी बैठक थी।
उत्तर- (क) सही (ख) सही (ग) सही (घ) गलत

3. ‘विश्व की साझी विरासत' के बारे में निम्नलिखित में कौन-से कथन सही हैं?
(क) धरती का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष को 'विश्व की साझी विरासत' माना जाता है।
(ख) 'विश्व की साझी विरासत' किसी राज्य के संप्रभु क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
(ग) 'विश्व की साझी विरासत' के प्रबंधन के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच विभेद है।
(घ) उत्तरी गोलार्द्ध के देश 'विश्व की साझी विरासत' को बचाने के लिए दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं।
उत्तर- (क) सही (ख) सही (ग) सही (घ) गलत

4. रियो सम्मेलन के किन्हीं दो परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- रियों सम्मेलन 1992 में ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ था। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित सम्मेलन था। इसे पृथ्वी सम्मेलन भी कहा गया  है। इस सम्मेलन में 170 देशों, हजारों स्वयंसेवी संगठन और विभिन्न बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के पश्चात पर्यावरण एक वैश्विक मुद्दा बन गया। पर्यावरण संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और विभिन्न देशों द्वारा कई कदम उठाए गए।
रियो सम्मेलन के निम्न परिणाम निकले
  1. वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर एक सटीक रूप दिया।
  2. 'आवार कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट छापी गई।
  3. विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की माँग अधिक प्रबल है और रिपोर्ट में इसी हवाले से चेतावनी दी गई।
  4. उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत में छेद तथा वैश्विक तापवृद्धि को लेकर थी।
  5. जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियम निर्धारित किए गए।

5. ‘विश्व की साझी विरासत' का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर- विश्व की साझी विरासत उस साझी संपदा या संसाधनों को कहते हैं, जिन पर किसी एक का नहीं, अपितु पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे संयुक्त परिवार का चूल्हा, कुआँ या नदी, चारागाह, मैदान,  आदि साझी संपदा के उदाहरण हैं। इसी तरह संसार के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें वैश्विक संपदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है।
इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं।
विश्व संपदा का दोहन और प्रदूषण
विश्व में चारों ओर प्रकृति का दोहन हो रहा है और प्रदूषण फैल रहा है। 1980 के दशक के मध्य में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज एक ऑख खोल देने वाली घटना हैं। इसी प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच प्रबन्धन की असमानता देखने को मिलती हैं। धरती के वायुमंडल और समुद्री सतह के समान महत्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिक विकास का रहा है। इसी दोहन और प्रदूषण को रोकने के लिए अंटार्कटिका संधि (1989), मॉट्रियल न्यायाचार (प्रोटोकॉल 1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार (1991)आदि महत्वपूर्ण समझोते हो चुके हैं। पर्यावरण का दोहन और प्रदूषण रोकना होगा, क्योंकि यह एक आवश्य्क बात है कि बाहरी अंतरिक्ष में जो दोहन-कार्य हो रहे हैं, उनके फायदे न तो मौजूदा पीढ़ी में सबके समान हैं और न आगे की पीढ़ियों के लिए।

6, 'साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों' से क्या अभिप्राय है? हम इस विचार को कैसे लागू कर सकते हैं?
अथवा
"पर्यावरण के प्रति राज्यों की साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ हैं-उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- पर्यावरण संरक्षण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के मध्य रवैये में काफी अंतर पाया जाता है। विकसित देशों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर हर किसी देश की जिम्मेदारी समान हो। दक्षिण के विकासशील देशों का तर्क है कि संसार में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है। विश्व में पर्यावरण प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण मानव सभ्यता खतरे में पड़ गई है। इसी कारण कहा गया हैं- पर्यावरण सरंक्षण की जिम्मेदारी हम सभी की है। विकासशील देशों का चूँकि औद्योगिक विकास हो चुका है और विकासशील देश इस प्रक्रिया से अभी गुजर रहे हैं, इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून के निर्माण, प्रयोग और व्याख्या में विकासशील देशों की विशिष्ट जरूरतों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में इस तर्क को मान लिया गया और इसे 'साझी परन्तु अलग-अलग जिम्मेदारियाँ' कहा गया।
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े निर्णय या सुझाव-
जलवायु परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार के अनुसार सभी देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण के अपक्षय में अपनी-अपनी भूमिका निभाते हुए पर्यावरण सुरक्षा में योगदान दें। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा हिस्सा विकसित देशों का है | i कारण भारत, चीन, और अन्य, विकासशील देशों के क्योटो-प्रोटोकॉल की बाध्यताओ से अलग रखा गया है। विश्व के विभिन्न देशों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाइड्रोफ्लोरो कार्बन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण विश्व का तापमान बढ़ रहा है। जापान के क्योटो प्रोटोकॉल 1997 में ग्लोबल वार्मिंग पर चेतावनी जताई गई। यह धरती के जीवन के लिए प्रलयकारी साबित हो सकती है। यूनाइटेड नेशन्स प्रेमवर्क कंवेशन ऑन क्लाइमेट चेंज पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए गए।

7. वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा से जुड़े 1990 के दशक से विभिन्न देशों के प्राथमिक सरोकार क्यों बन गए हैं?
उत्तर- पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लंबा इतिहास हैं, लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता ने 1960 के दशक के पश्चात राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया है। विश्व में वैश्विक मामलों से सरोकार रखने वाले एक विद्वत समूह 'क्लब ऑफ रोम' ने 1972 में 'लिमिट्स टू ग्रोथ' शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के कारण पैदा हुई समस्याओं और प्राकृतिक संसाधनों के विनाश को अच्छी तरह बताती हैं।
वैश्विक पर्यावरण विभिन्न देशों के लिए प्राथमिक सरोकार बना 1990 के दशक में। इसके मुख्य कारण निम्न थे-
  1. दुनियाभर में कृषि योग्य भूमि या उपजाऊ भूमि की उर्वरता में निरन्तर गिरावट हो रही है।
  2. जलाशयों में जल-स्तर निरन्तर घट रहा है।
  3. मत्स्य भंडार कम होते जा रहे हैं।
  4. विकासशील देशों की लगभग 1 अरब 20 करोड़ जनता को स्वच्छ जल प्राप्त नहीं होता।
  5. साफ-सफाई के अभाव में 30 लाख से अधिक बच्चे हर साल मौत के शिकार होते हैं।
  6. वनों के निरन्तर कटाव के कारण जैव विविधता को नुकसान हो रहा है।
  7. ओजोन परत में छेद के कारण पारिस्थितिकी तंत्र और मनुष्य के स्वास्थ्य पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
  8. विश्व में समुद्रतटीय क्षेत्रों पर प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।

8. पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर- पर्यावरण का ह्रास एक विश्वव्यापी समस्या है। अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय राजनीति का सीधा संबंध उस गम्भीर खाई से है जो कि उत्तर के अमीर राष्ट्रों द्वारा नियंत्रित एवं सुरक्षित रखी गई है ताकि दक्षिण के निर्धन देशों के संसाधनों को छीनकर उन पर भी नियंत्रण स्थापित किया जा सके। पर्यावरण के प्रश्न पर उत्तरी व दक्षिणी देशों को बराबर का हिस्सा बनाना चाहते हैं। विश्व के तीन बड़े विकासशील देशों को इस उत्तरदायित्व से छूट दी गई है और उनके इस तर्क को भी मान लिया गया है कि ग्रीन हाउस के गैस के उत्सर्जन के मामलों में मुख्यत: वे देश जिम्मेदार हैं, जिनका औद्योगिकरण हो चुका है। इस प्रकार यह बहस जारी है।
कुछ मुख्य मुद्दे जो अनेक देशों द्वारा उठाए गए और उनसे संबंधित वार्ताएँ निम्न हैं-
  1. वर्ष 2005 के जून में ग्रुप 8 के देशों की बैठक में भारत ने ध्यान दिलाया कि ग्रीन हाउस गैसों की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर विकासित देशों की तुलना मेंबहुत कम है। साझी परन्तु भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों के सिद्धान्त के अनुरूप भारत का विचार है कि उत्सर्जन दर में कमी करने की सबसे अधिक जिम्मेदारी विकसित देशों की है, क्योंकि ये लम्बे समय तक बहुतअधिक उत्सर्जन कर चुके हैं।
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु-परिवर्तन से संबंधित बुनियादी नियमाचार (UNFCCC) के अनुरूप भारत पर्यावरण से जुड़े अन्तर्राष्ट्रीय मसलों से अधिकतर उत्तरदायित्व का तर्क रखते हुए कहता है कि ग्रीन हाउस गैसों के रिसाव की ऐतिहासिक और मौजूदा जवाबदेही ज्यादातर विकसित देशों की है। विकासशील देशों की पहली और अपरिहार्य प्राथमिकता आर्थिक और सामाजिक विकास की हैं।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार (UNFCCC) के अन्तर्गत चर्चा चली कि तेजी से औद्योगिक होते देश (जैसे-ब्राजील, चीन और भारत) नियमाचार की बाध्यताओं का पालन करते हुए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें। भारत का मानना है कि यह बात इस नियमाचार की मूल भावना के विरूद्ध है।
  4. पर्यावरण की समस्या किसी एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि पुरे विश्व की समस्या है। पृथ्वी संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण में सभी देशों को योगदान देना चाहिए, चाहे वे विकसित देश हों या विकासशील देश। सभी देशों को आपसी सलाह से काम लेना चाहिए, आपसी मतभेदों कोखत्म करना  चाहिए।

9. विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को कोई नुकसान पहुँचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरणों के साथ समस्याएँ।
उत्तर- पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास विश्व स्तर पर किए जा रहे हैं। हर देश किसी-न-किसी रूप में अपनी भागीदारी दे, तभी सफलता मिल सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर परआवश्यक कदम सरकारों की तरफ से नहीं, बल्कि विश्व के अनेक भागों में सक्रिय पर्यावरण के प्रति सचेत कार्यकर्ताओं ने की है। इन कार्यकर्ताओं में कुछ तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और बाकी स्थानीय स्तर पर सक्रिय हैं। इन नए-नए आंदोलनों से हमें नए-नए विचार मिलते हैं। यहाँ कुछ देशों द्वारा चलाए जा रहे पर्यावरण से संबंधित आंदोलनों के बारे में बताएँगे, जिससे पता  लगता है कि मौजूदा पर्यावरण आंदोलनों की एक मुख्य विशेषता उनकी विविधता है।
पर्यावरण संरक्षण और विभिन्न देश-
दक्षिण देशों मसलन ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया,मैक्सिको, चिली,  महादेशीय अफ्रीका और भारत के वन आंदोलनों पर बहुत दबाव है। दबाव के बाद भी विभिन्न देशों में वनों की कटाई खतरनाक गति से जारी है। पिछले दशक में विश्व के विशालतम वनों का विनाश बढ़ा है।
खनिज उद्योग पृथ्वी पर मौजूद ताकतवर उद्योगों में से एक है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के कारण विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ खुल रही हैं। खनिज उद्योग धरती में मौजूद संसाधनों को बाहर निकालता है, रसायनों का भरपूर उपयोग होता है, जिससे भूमि और जल मार्ग प्रदूषित होता है। इन्हीं कारणों से विश्व के विभिन्न भागों में खनिज उद्योग की आलोचना और विरोध हुआ है।
उदाहरण-
  1. एक अच्छा उदाहरण फिलीपिन्स है, जहाँ कई समूहों और संगठनों ने एक साथ मिलकर आस्ट्रेलियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी 'वेस्टर्न माइनिंग कारपोरेशन' के खिलाफ अभियान चलाया। इस कंपनी का विरोध खुद इसके स्वदेश आस्ट्रेलिया में हुआ। इस विरोध के पीछे परमाणविक शक्ति के विरुद्ध भावनाएँ और आदिवासियों के अधिकारों की पैरोकरी के कारण किया जा रहा है।
  2. कुछ आन्दोलन बड़े बाँधों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। इन आन्दोलनों में नदियों को बचाने के लिए आन्दोलन चलाए जा रहे हैं। इन आन्दोलनों में नदियों और नदी-घाटियों के ज्यादा टिकाऊ और न्यायसंगत प्रबंधन की बात उठाई गई है। 1980 के दशक के शुरुआती और मध्यवर्ती वर्षों में संसार का पहला बाँध विरोधी आन्दोलन दक्षिणी गोलाद्ध में चला। यह आन्दोलन फ्रेंकलिन नदी और इसके परिवर्ती वन को बचाने का आदोलन था। यह वन और विजनपन की पैरोकारी करने वाला आन्दोलन था ही, बाँध विरोधी आन्दोलन भी था।
  3. वर्तमान में दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में तुर्की से लेकर थाइलैंड और दक्षिण अफ्रीका तक तथा इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बाँधों को बनाने की होड़ लगी है। भारत में कुछ बाँध विरोधी और नदी हितैषी आंदोलन चल रहे हैं, जिनमें नर्मदा आंदोलन सबसे लोकप्रिय है |

महत्वपूर्ण प्रश्नपाठ-8पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन


एक अंकीय प्रश्न :-
1. विश्व राजनीति में पर्यावरण के मुद्दे ने कब जोर पकड़ा?
उत्तर1960 के दशक में
2. लिमिट्स टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक किसने प्रकाशित की?
उत्तरक्लब ऑफ रोम
3. ‘आवर कॉमन फ्यूचर’ नामक रिपोर्ट में क्या संकेत दिया गया?
उत्तरआर्थिक विकास के वर्तमान तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे।
4. साझी सम्पदा किसे कहते हैं?
उत्तरजिन संसाधनों पर एक व्यक्ति की बजाय पूरे समुदाय का अधिकार हो।
5. विश्व की साझी सम्पदा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तरवह क्षेत्र जो एक देश की सम्प्रभुता से बाहर हो तथा उसका प्रबन्ध अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाय।
6. विश्व जलवायु के संदर्भ में अंटार्कटिक महाद्वीप की क्या उपयोगिता है?
उत्तरविश्व जलवायु का संतुलन करना।
7. तापवृद्धि करने वाली गैसों के नाम लिखिये।
उत्तरकार्बन डाई आक्साईड, हाईड्रो-फ्लोरोकार्बन तथा मिथेन
8. पानी के बंटवारे को लेकर किन देशों में संघर्ष हुआ?
उत्तरइजराईल, जार्डन, सीरिया
9. विश्व की साझी सम्पदा के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तरपृथ्वी का वातावरण, अंटार्कटिका, समुद्री सतह व बाह्य अन्तरिक्ष
10. भारत में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम कब पारित किया गया?
उत्तरसन् 2011 में
11. निम्न रिक्त स्थान पूरा करोः-
1992 में पर्यावरण के मुद्दे पर 170 देश, हजारों संगठन तथा उनके बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने ..................... ने भाग लिया।
उत्तररियो-डी-जेनेरिओ में पृथ्वी सम्मेलन
12. मूलवासियों के विश्व व्यापी संगठन का नाम क्या है।
उत्तर‘वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपल’
13. अंटार्कटिका महाद्वीप कितने किमी. में फैला है?
उत्तरएक करोड़ 40 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र
14. 1970 के दशक में अफ्रीका की सबसे बड़ी विपदा क्या थी?
उत्तरअनावृष्टि

दो अंकीय प्रश्न :-
1. विश्व का पहला बाँध विरोधी आन्दोलन कब तथा कहां हुआ?
उत्तर1980 के दशक में आस्ट्रेलिया में फ्रेंकलिन नदी तथा इसका वनक्षेत्र बचाना।
2. साझी सम्पदा का आकार क्यों घट रहा है?
उत्तरनिजीकरण, जनसंख्या वृद्धि, परिस्थितिकी तन्त्र की गिरावट तथा सघन खेती।
3. पर्यावरण की दृष्टि से वनों का क्या महत्व है?
उत्तरजलवायु को संतुलित, जल चक्रसंतुलित, जैव विविधता तथा भूमि को बंजर होने से बचाना।
4. अजेण्डा 21 किस मुद्दे से संबंधित है? प्रकाश डालिए।
उत्तरपृथ्वी सम्मेलन में पर्यावरण के 21 प्रस्तावों से सम्बन्ध्ति
5. मूलवासी कौन लोग होते हैं?
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें।
6. भारत में मूलवासियों के लिए क्या नाम दिया गया है? कुल जनसंख्या में उनका कितना प्रतिशत है?
उत्तरअनुसूचित जनजाति या आदिवासी, 08 प्रतिशत
7. पृथ्वी सम्मेलन में किस बात पर सहमति बनी।
उत्तरआर्थिक वृद्धि से पर्यावरण हानि न हो।
8. ऐसे दो देशों के नाम बताओ जिनको क्योटों प्रोटोकॉल की शर्तों से अलग रखा गया।
उत्तरभारत तथा चीन
9. भारत में कौन-कौन से बाँध विरोधी आन्दोलन चलाये गये?
उत्तरनर्मदा बचाओ तथा टिहरी बचाओ
10. किन-किन संसाधनों पर भू राजनीति की गई?
उत्तर(i)तेल भण्डार पेट्रोलियम
(ii)खनिज पदार्थ
(iii)लकड़ी
(iv)जल
11. पर्यावरण प्रदुषित होने के दो कारण बताइये?
उत्तर(1) प्राकृतिक संसाधनों का अन्धधुन्ध दोहन (2) वनों की निरंतर कटाई।

चार अंकीय प्रश्न :-
1. पृथ्वी सम्मेलन के क्या परिणाम हुए?
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें।
2. पर्यावरण को लेकर उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में क्या विवाद है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरस्मरणीय बिन्दु सांझी जिम्मेदारी भूमिकायें अलग-अलग
3. 1970 के दशक से विश्व में पर्यावरणीय आन्दोलन क्यों हो रहे हैं? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर(A)प्रदूषण
(B)वनों की कटाई
(C)प्राकृतिक असन्तुलन
(D)संसाधनों का स्वार्थपूर्ण दोहन
(E)विकास परियोजनाओं के दुष्परिणाम
4. विश्व में बाँध विरोधी आन्दोलन क्यों आरंभ हो रहे हैं?
उत्तर(A)नदियों तथा वनों को बचाना
(B)विस्थापन की समस्या
(C)उस क्षेत्र के जीवन जन्तुओं पक्षियों व संस्कृति को बचाना
(D)प्राकृतिक सन्तुलन के लिए
5. विश्व की साझी सम्पदा की रक्षा के लिए कौन-कौन से समझौते किये गये?
उत्तर(A)1959 में अंटार्कटिका सन्धि
(B)1987 मेमान्ट्रियल प्रोटोकॉल
(C)1991 में अटार्कटिका पर्यावरणीय प्रोटोकॉल
(D)1997 क्योटों प्रोटोकॉल
6. टिकाऊ (अक्षय) विकास क्या है? इसको कैसे लागू किया जा सकता है?
उत्तरटिकाऊ विकास - प्राकृतिक संसाधनों का ऐसे प्रयोग करना कि वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकतायें पूरी हो जायं और भविष्य की पीढ़ी के लिए भी बचे रहें।
(A)अपरिग्रह की भावना (आवश्यकताओं में कमी)
(B)आवश्यकतानुसार उत्पादन
(C)प्राकृतिक सह अस्तित्व
(D)प्राकृतिक साधनों का उचित और पूर्णतः प्रयोग
7. मूलवासियों की मुख्य मांग क्या है?
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें।
8. प्रस्तुत कार्टून का विश्लेषण करके इस पर अपने विचार प्रकाट कीजिए।
उत्तरएक देश दूसरे देश से पुननिर्माण का खर्च पेट्रोलियम भाग रहा है जिस पर वर्तमान में विश्व अर्थव्यवस्था निर्भर है पेट्रोलियम पर कब्जा करने के लिए राजनीतिक संघर्ष किया जाता है।

छः अंकीय प्रश्न :-
1. विश्व के देश प्रकृति की रक्षा के लिए क्यों चिन्तित है?
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें।
2. विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के क्या कारण है तथा इसका संरक्षण कैसे किया जा सकता है? विचार प्रकट करें।
उत्तरप्रदूषण के उत्तरदायी कारण -
(A) जनसंख्या वृद्धि
(B) भौतिकवादी विचार धरा
(C) औद्योगिकीकरण
(D) वनों की कटाई
(E) संसाधनों का अति दोहन
संरक्षण के उपाय
(A) जन संख्या नियंत्राण
(B) वन संरक्षण
(C) पर्यावरण मित्रा तकनीक का प्रयोग
(D) संसाधनों का संतुलित प्रयोग
(E) परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग
(F) जन जागरुकता के कार्यक्रम
(G) अन्तराष्ट्रीय सहयोग
3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के क्या प्रयास किये गये? उल्लेख करें।
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें|
4. साझी जिम्मेदारी लेकिन भूमिकायें अलग-अलग से आपका क्या अभिप्राय है? भारत की इस मुद्दे पर क्या राय है?
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें|
5. भारत ने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या नीति अपनाई है? अपने विचार प्रकट करें।
उत्तरस्मरणीय बिन्दु देखें|

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