पाठ-1 शीतयुद्ध का दौर
- द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस तथा सोवियत संघ जिन्हें मित्र राष्ट्र कहा गया ने विजय प्राप्त की तथा जर्मनी, इटली तथा जापान जिन्हें धुरी राष्ट्र कहा गया, इनकीयुद्ध में हार हुई।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1990 तक की वह तनावपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक स्थितिजो संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच रही, को शीत युद्ध कहा गया।
- किसी भी शक्ति गुट में बिना शामिल हुए अपनी नीतियों का अनुसरण करना गुटनिरपेक्षता तथाकिसी भी पक्ष में युद्ध में भाग न लेना तटस्थता की नीति कहलाई।
स्मरणीय बिंदु:
- प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला था, जिसने सम्पूर्ण विश्व को दहला दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के बीच हुआ, जिसमें केवल यूरोपीय देश ही नहीं, अपितु दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, बर्मा तथा भारत के पूर्वोत्तर भाग भी शामिल थे।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दो महाशक्तियाँ अमरीका और सोवियत संघ उभरकर सामने आए, जिन्होंने एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमरीका के नव स्वतंत्र देशों को अपने खेमे में लेने की कोशिश की।
- शीतयुद्ध, युद्ध न होते हुए युद्ध की परिस्थितियाँ थीं; जिसमें वैचारिक घृणा, राजनीतिक अविश्वास, कूटनीतिक जोड़-तोड़, सैनिक प्रतिस्पर्धा, जासूसी, प्रचार, राजनीतिक हस्तक्षेप, शस्त्रों की दौड़ जैसे साधनों का प्रयोग किया गया था।
- शीतयुद्ध काल में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति दो विरोधी गुटों या विचारधारा (अमरीकी गुट तथा सोवियत गुट-पूँजीवादी तथा साम्यवादी) में विभाजित हो गई थी।
- शीतयुद्ध काल में नाटो, सिएटो तथा वारसा पैक्ट जैसे सैनिक गुटों का निर्माण किया गया।
- विकासशील या नव स्वतंत्र राष्ट्रों ने शीतयुद्ध से अलग रहने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई।
- 1961 में यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में भारत की अगुवाई पर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत अन्य देशों जैसे-घाना, मिस्र के साथ मिलकर की गई।
- विकासशील देशों ने विकासशील देशों की विकसित देशों पर निर्भरता को कम करने के लिए 1970 में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की।
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन और नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था, द्विध्रुवीय विश्व के सामने एक चुनौती बन कर आए थे।
- आपसी सहयोग और विकास के लिए उत्तर-दक्षिण संवाद तथा दक्षिण-दक्षिण सहयोग जैसे संवाद को आरम्भ किया गया।
- शीतयुद्ध के दौरान भारत ने विकासशील देशों को गुटनिरपेक्षता जैसा एक मंच प्रदान करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- शीतयुद्ध के दौरान परमाणु युद्ध की संभावना बनी हुई थी, लेकिन दोनों शक्तियों में शक्ति-संतुलन ने युद्ध को वास्तविक रूप लेने से रोका।
- शीतयुद्ध की कुछ घटनाएँ, जिन्होंने तृतीय विश्व युद्ध की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था- क्यूबा मिसाइल संकट, कोरिया युद्ध, अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप, सोवियत संघ द्वारा परमाणु परीक्षण आदि।
- शीतयुद्ध के दौरान नि:शस्त्रीकरण के प्रयत्न स्वरूप विभिन्न सन्धियाँ व समझौते किए गए।
- शीतयुद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्रसंघ भी शीतयुद्ध की राजनीति से काफी प्रभावित था। कोई भी निर्णय लेना आसान नहीं था, क्योंकि दोनों गुट एक-दूसरे के विरोधी थे।
सैन्य-सन्धि संगठन-
- दोनों महाशक्तियों ने अपनी शक्ति वृद्धि हेतु सैन्य संगठन बनाये। अप्रैल 1949 में (उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन) नाटो, अमेरिका द्वारा लोकतंत्र को बचाना, 1954 में दक्षिण पूर्वएशियाई सन्धि संगठन (सीटों) अमेरिका नेतृत्व-साम्यवाद प्रसार रोकना, 1955 में बगदाद पैक्टया केन्द्रीय सन्धि संगठन अमेरिकी नेतृत्व-साम्यवाद रोकना, 1955 वारसा सन्धि सोवियत संघनेतृत्व।
- अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाते हुए तथा उनसे प्राप्त अन्य लाभों को देखते ही महाशक्तियाँ छोटे देशों को साथ रखना चाहती थी।
- छोटे देश भी सुरक्षा, हथियार और आर्थिक मदद की दृष्टि से महाशक्तियों से जुड़े रहना चाहते थे।
- परमाणु सम्पन्न होने के कारण दोनों ही महाशक्तियों में रक्त रंजित युद्ध के स्थान पर प्रतिद्धन्द्धिता तथा तनाव की स्थिति बनी रही। जिसे शीत युद्ध कहा गया।
महाशक्तियों को छोटे देशों से लाभ-
- छोटे देशों के प्राकृतिक संसाधन प्राप्त करना।
- सैन्य ठिकाने स्थापित करना।
- आर्थिक सहायता प्राप्त करना।
- भू-क्षेत्र (ताकि महाशक्तियाँ अपने हथियारों और सेना का संचालन कर सके।)
शीतयुद्ध के दायरे (विवाद क्षेत्र)-
- 1948 - बर्लिन की नाके बन्दी
- 1950 - कोरिया संकट
- 1954 - में वियतनाम में अमेरिका हस्तक्षेप
- 1962 - क्यूबा मिसाइल संकट
- 1971 - भारत-पाक युद्ध
- 1979 - अपफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप
दो ध्रुवीयता को चुनौती:-
- गुटनिरेपेक्षता- भारत के जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के अब्दुल गमाल नासिर, युगोस्लाविया के टीटो, इण्डोनेशिया के सुकर्णों, घाना के वामें एनक्रुमा ने 1961 में युगोस्लाविया के बेलग्रेड में 25 सदस्यों के साथ इस संगठन की स्थापना की। जुलाई 2009 में गुट निरपेक्ष देशों का 15वां सम्मेलन मिस्र में हुआ जिसमें इसकी सदस्य संख्या 118 तथा 15 देश पर्यवेक्षक है | पर्यवेक्षक संगठनों की संख्या 9 है।
- नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था- गुट निरपेक्ष देशों ने 1972 में संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास से सम्बंधित सम्मेलन (UNCT AD) में विकास के लिए ‘एक नई व्यापार नीति की ओर’ एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया ताकि विकसित देशों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा गरीब देशों का आर्थिक शोषण समाप्त हो सकें।
- भारत व शीत युद्ध- भारत ने नव स्वतंत्र देशों की अगुवाई की। भारत ने USA तथा USSR से अच्छे संबंध रखने की कोशिश राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकता के साथ की।
- 17 वें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का आयोजन वेनेजुएला के 'भार्गारिता द्वीप में सितम्बर, 2016 की किया गया। वर्तमान में इस आंदोलन के सदस्यों की संख्या 120 है। साथ ही साथ वर्तमान से इसके 17 देश तथा 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर्यवेक्षक है इस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद, संयुक्त राष्ट्र सुधार, पश्चिम एशिया की स्थिति, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों, जलवायु परिर्वतन, सतत विकास शारणार्थी समस्या और परमाणु निशस्त्रीकरण जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
- नव अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (N.I.E.O) 1972 में U.N.O के व्यापार एवम् विकास आंदोलन (UNCTAD) में विकास के लिए एक नई व्यापार नीति का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया ताकि धनी देशों द्वारा नव स्वतन्त्र गरीब देशों का शोषण न हो सके।
टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलेपमेंट (विकास के लिए नई व्यापारिक नीति की ओर) एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
शस्त्र नियन्त्रण संन्धि-
- L.T.B.T. – Limited Test Ban Treaty 05-10-1963, जल, वायुमण्डल, बाह्य अंतरिक्ष में परमाणु परीक्षण प्रतिबन्ध्।
- N.P.T – Nuclear Non – Proliferation Treaty 01-7-1968, इसमें जनवरी 1967 से पूर्ण परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के अलावा कोई अन्य देश परमाणु हथियार हासिल नहीं करेगा।
- SALT – Strategic Arms Limitation Talk-I-मई 1972 व SALT-II-जून 1972, घातक प्रतिरक्षा हथियार परिसीमन।
- START – Strategic Arms Reeducation Treaty I-July 1991 and STAR-II-January 1993 - सामरिक अस्त्र परिसीमन न्यूनीकरण सन्धि |
नए स्वतंत्र देश (तीसरी दुनिया) ने गुट निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया क्योंकि-
- नव-स्वाधीन राष्ट्र जानते थे कि सैनिक गुट उनकी स्वाधीनता व शांति के लिए गंभीर खतरा पैदा कर देंगे।
- नव-स्वाधीन राष्ट्र जानते थे कि सैनिक संगठनों को बढ़ावा देने से अस्त्र-शस्त्र के निर्माणों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे विश्व शांति को खतरा पैदा होगा।
- इन देशों के सामने सामाजिक और आर्थिक पुनर्निर्माण की एक भारी जिम्मेदारी थी और इस कार्य को युद्ध एवं तनावों से मुक्त वातावरण में ही पूरा किया जा सकता था।
- शक्ति संगठन का सदस्य बनने से उन्हें संगठनों के बनाए गए नियमों पर चलना पड़ता, इसलिए तटस्थ रहे।
शीतयुद्ध का घटनाक्रम-
- 1947- साम्यवाद को रोकने के लिए अमरीकी राष्ट्रपति ट्रूमैन का सिद्धान्त।
- 1947-52- मार्शल प्लान-पश्चिमी यूरोप के पुनर्निर्माण में अमरीका की सहायता।
- 1948-49- सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी। अमरीका और उसके साथी देशों ने पश्चिमी बर्लिन के नागरिकों को जो आपूर्ति भेजी थी, उसे सोवियत संघ ने अपने विमानों से उठा लिया
- 1950-53- कोरियाई युद्ध
- 1954- वियतनामियों के हाथों दायन बीयन फू में फ्रांस की हार; जेनेवा पर हस्ताक्षर: 17वीं समानांतर रेखा द्वारा वियतनाम का विभाजन और सिएटी (SEATO) का गठन।
- 1954-75- वियतमान में अमरीकी हस्तक्षेप।
- 1955- बगदाद समझौते पर हस्ताक्षर (बाद में इसका नाम सेन्टो (CENTO) रख दिया।
- 1956- हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप।
- 1961- क्यूबा में अमरीका द्वारा प्रायोजित 'बे ऑफ़ पिग्स' आक्रमण।
- 1961- बर्लिन दीवार खड़ी की गई।
- 1962- क्यूबा का मिसाइल संकट।
- 1965- डोमिनिकन रिपब्लिक में अमरीकी हस्तक्षेप।
- 1968- चेकोस्लोवाकिया में सोवियत हस्तक्षेप।
- 1972- अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन का चीन दौरा।
- 1978-89- कंबोडिया में वियतनाम का हस्तक्षेप।
- 1985- गोर्बाचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बने; सुधार की प्रक्रिया आरंभ की।
- 1989- बर्लिन की दीवार गिरी; पूर्वी यूरोप की सरकारों के विरुद्ध लोगों का प्रदर्शन।
- 1990- जर्मनी का एकीकरण।
- 1991- सोवियत संघ का विघटन; शीत युद्ध की समाप्ति।
Class 12 राजनीति विज्ञान
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तरपाठ-1शीतयुद्ध का दौर
1. शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) यह संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्द्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
(क) यह संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्द्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था।
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की।
(घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
उत्तर- (घ) अमरीका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे।
2. निम्न में से कौन-सा कथन गुटनिरपेक्ष अांदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केंद्रित करना।
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केंद्रित करना।
उत्तर- (ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।
3. नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्तियों का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था, तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
(क) गठबंधन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था।
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्तियों का समर्थन करना था।
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था, तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था।
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं।
उत्तर- (क) सही (ख) सही (ग) सही (घ) गलत।
4. नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखें कि वह शीत युद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था- (क) पोलैंड (ख) फ्रांस (ग) जापान (घ) नाइजीरिया (ङ) उत्तरी कोरिया (च) श्रीलंका
उत्तर- (क) पोलैंड : सोवियत संघ के साम्यवादी गुट में
(ख) फ्रांस : संयुक्त राज्य अमरीका के पूँजीवादी गुट में
(ग) जापान : संयुक्त राज्य अमरीका के पूँजीवादी गुट में
(घ) नाइजीरिया : गुटनिरपेक्ष में
(ङ) उत्तरी कोरिया : सोवियत संघ के साम्यवादी गुट में
(च) श्रीलंका : गुटनिरपेक्ष में
(ख) फ्रांस : संयुक्त राज्य अमरीका के पूँजीवादी गुट में
(ग) जापान : संयुक्त राज्य अमरीका के पूँजीवादी गुट में
(घ) नाइजीरिया : गुटनिरपेक्ष में
(ङ) उत्तरी कोरिया : सोवियत संघ के साम्यवादी गुट में
(च) श्रीलंका : गुटनिरपेक्ष में
5. शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण-ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुई। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
उत्तर- शीतयुद्ध की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात हुई, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमरीका दोनों में शस्त्रों की होड़ लगी हुई थी। मानव जाति परमाणु युद्ध के आतंक के साये में जीवन बिता रही थी। तीसरे विश्व युद्ध का खतरा दुनिया पर मंडरा रहा था। शीतयुद्ध काल में शान्तिपूर्ण प्रतिद्वन्द्वता का स्थान आक्रामक राजनीतिक सैनिक प्रतिद्वन्द्रता ने ले लिया। पुराने सैनिक अड्डों का विस्तार, नए सैनिक अड्डों की खोज, नये शस्त्रों की खोज, द्रुतगामी परिनियोजित सेना दोनों की यही मनोवृति थी। इस तरह दोनों गुटों में हथियारों की होड़ निरन्तर जारी रही। यही शीतयुद्ध का कारण बनी।
हथियारों पर नियन्त्रण से तात्पर्य है-शीतयुद्ध के वातारण में दोनों गुटों में कभी भी प्रत्यक्ष युद्ध हो सकता था। इसलिए हथियारों पर नियन्त्रण की मदद को दोनों गुटों ने महसूस किया। हथियारों की होड़ के दौरान ही हथियारों पर नियन्त्रण की प्रक्रिया भी आरम्भ हो गई। इस दिशा में विभिन्न वार्ताएँ और संधियों पर हस्ताक्षर किए गए, जैसे-सीमित परमाणु परीक्षण संधि (LTBT), परमाणु अप्रसार संधि (NPT), सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता–1 (SALT–I), सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-II (SALT-II), सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि-I (START-I), सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि-II (START-II)।
6. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइए।
उत्तर- महाशक्तियों के पास परमाणु हथियार तथा स्थायी सेना थी। छोटे देशों के अनेक मामलों जैसे आर्थिक और राजनीतिक मामलो में हमेशा महाशक्तियाँ हस्तक्षेप करती रही हैं तथा उनकी आवश्यकता भी करती रही हैं। छोटे देशों के साथ गठबन्धन करने से उनकी सदस्य साथी देशों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, जिससे वे ज़्यादा देशों पर अपना वर्चस्व दिखा सके।
महाशक्तियाँ निम्न कारणों से छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन रखती थीं
- महाशक्तियाँ छोटे देशों को अपने अधिकार में लेकर उन स्थानों से सेना का संचालन कर सकती थीं। युद्ध सामग्री का संग्रहण भी कर सकती थीं।
- महाशक्तियाँ अपने सैन्य गठबन्धन छोटे देशों के साथ जासूसी करने के लिए भी करती थीं।
- महाशक्तियाँ छोटे देशों से तेल तथा खनिज जैसे मुख्य संसाधनों को प्राप्त करने के लिए भी उनके साथ सैन्य गठबन्धन करती थीं।
7. कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर- शीतयुद्ध को शक्ति के लिए संघर्ष कहा जाता है, न कि विचारधाराओं का संघर्ष या तनाव। शीतयुद्ध केवल शक्ति के लिए संघर्ष है-यह कहना तर्क संगत नहीं होगा, क्योंकि अमरीकी गुट तथा अन्य यूरोपीय या पश्चिमी देश पूँजीवादी विचारधारा में सम्मिलित थे, लेकिन सोवियत संघ तथा उसके समर्थित देश साम्यवादी विचारधारा का समर्थन करते थे। दोनों विचारधाराएँ आपस में विरोधी थीं। दोनों में संदेह तथा भय व्याप्त था। दोनों गुटों ने एक-दूसरे के विरुद्ध सैन्य संगठन बनाए (नाटो व वारसा पैक्ट)। अनेक नव स्वतंत्र देशों को विभिन्न तरह से मदद (आर्थिक, परमाणु हथियार, सेना) देकर अपने पक्ष में करके उन्होंने एक बड़ा समर्थित गुट तैयार कर लिया। शीतयुद्ध प्रत्यक्ष युद्ध नहीं था, अपितु विचारों या विचारधाराओं का युद्ध था, जिसमें जासूसी, एक दूसरे के विरुद्ध विचार प्रकट करना तथा प्रतिक्रिया शामिल है।
1990 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध समाप्त माना जाता है और गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का उदय या विकास शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुटों से अलग रहने के लिए किया गया था।
8. शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमरीका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?
अथवा
'शीतयुद्ध' के प्रति भारत की अनुक्रिया क्या थी? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- शीतयुद्ध के समय भारत ने अमरीका तथा सोवियत संघ दोनों गुटों से अलग रहने की नीति अपनाया, जिससे वह दोनों गुटों के साथ मधुर संबंध बना सके, न कि तनाव के माहौल में रहे। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा घाना, मिस्र, इण्डोनेशिया और यूगोस्लाविया के शासकों के साथ मिलकर एक तीसरा मोर्चा खोला गया, जिसे गुटनिरपेक्षता कहा जाता है। गुटनिरपेक्षता किसी गुट में शामिल न होने की नीति है, न कि निष्क्रिय होने की नीति। इसने अपितु दोनों गुटों से अलग रहकर विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए शीतयुद्ध के दौरान दोनों गुटों के बीच तनाव को कम करने का प्रयास किया।ऐसी वजह से शीतयुद्ध प्रत्यक्ष युद्ध का रूप नहीं ले पाया। भारत एशिया महाद्वीप का एक बड़ा देश है। दोनों ही गुट इसे अपने गुट में शामिल करना चाहते थे, जिससे वे एशिया व पूर्वी देशों को अपने साथ शामिल करने के लिए दबाव डाल सकें और सैनिक अड्डे के रूप में भारत का इस्तेमाल कर एशिया व पूर्वी क्षेत्र पर कब्जा कर सकें।
भारत की अमेरिका के प्रति विदेश नीति-भारत और अमेरिका के संबंध कभी भी मैत्रीपूर्ण नहीं रहे। उसका कारण है अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को समर्थन देना और साथ ही हथियारों की सप्लाई करना।
अमेरिका ने भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का समर्थन किया है। १९६४ और 1971 के युद्ध में पाकिस्तान ने अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल किया। 1985 के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अमेरिका यात्रा से थोड़ा सुधार हुआ।
9. गुटनिरपेक्ष आंदोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था, तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन 1 सितम्बर, 1961 को बेलग्रेड में हुआ था। इसमें 25 अफ्रीकी, एशियाई राष्ट्रों तथा एक यूरोपीय राष्ट्र ने भाग लिया था। एशिया तथा अफ्रीका के नव स्वतंत्र राष्ट्र न तो पूँजीवादी विचारधारा (अमरीका) को अपनाना चाहते थे तथा न ही साम्यवादी विचारधारा (सोवियत संघ) को इसलिए उन्होंने दोनों से अलग रहकर शक्ति, राजनीति, शीतयुद्ध, साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव उपनिवेशवाद, नस्ल भेद, शस्त्र दौड़ और परमाणु प्रयोग के विरुद्ध एक महान मुहिम छेड् दी।
गुटनिरपेक्षता का मुख्य औचत्य विश्व शांति, स्वतन्त्रता, समृद्धि में आपस में सहयोग को बढ़ावा देना था। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में विकासशील राष्ट्र या विशेषकर नव स्वतंत्र राष्ट्र शामिल थे। इन्होंने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में भाग लिया या गुटनिरपेक्षता को अपनाया, क्योंकि ये पूँजीवादी तथा साम्यवादी गुट में शामिल होना नहीं चाहते थे। ये दोनों गुटों से स्वतंत्र रहकर अपने-अपने देश का स्वतंत्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना चाहते थे।
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का सदस्य बनकर ये दोनों गुटों से आर्थिक मदद ले सकते थे। यदि एक राष्ट्र विकासशील राष्ट्र को दबाने की कोशिश करेगा, तब दूसरा राष्ट्र उसके सामने विकल्प के रूप में विद्यमान रहेगा। विकासशील देश अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने और विकास के लिए धनी देशों पर निर्भर थे। इन्हीं परिस्थितियों में नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) की अवधारणा हमारे सामने आई।
नई अन्तरांगाष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के मुख्य सिद्धांत-
- एक वैश्विक व्यापार प्रणाली शुरू हुई ।
- विकासशील राष्ट्र पश्चिमी देशों से प्रौद्योगिकी मैंगा सकते हैं।
- बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों का नियमन और निरीक्षण करना।
- अल्प विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।
- विकासशील देशों पर वित्तीय ऋणों के भार को कम करना।
- नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था से तीसरी दुनिया के देशों को विकास में मदद मिली। यह सब विकास केवल गुटनिरपेक्षता के कारण ही संभव हो पाया।
10. ‘गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है।' आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
अथवT
शीतयुद्ध समाप्त होने के पश्चात गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता क्या है? व्याख्या कीजिए।
अथवT
एकल ध्रुवीय विश्व में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत 1961 में नव स्वतंत्र या विकासशील देशों के माध्यम से की गई थी। गुटनिरपेक्ष देश किसी भी गुट में शामिल होना नहीं चाहते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात विश्व दो भागों या दो विरोधी गुटों में विभाजित गया था। एक गुट में पूँजीवादी राष्ट्र या अमरीका समर्थक राष्ट्र थे। दूसरे में, साम्यवादी विचारधारा वाले राष्ट्र या सोवियत संघ समर्थित राष्ट्र शामिल थे। एशिया और अफ्रीका के ये विकासशील देश राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से काफी कमजोर थे, इसलिए ये देश दोनों ही गुटों से आर्थिक मदद प्राप्त करना चाहते थे और ये एक गुट में सम्मिलित नहीं होना चाहते थे।
विकासशील देश स्वतंत्र विदेश नीति के संचालन के लिए और स्वतंत्रतापूर्वक राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास करना चाहते थे। इसलिए इन देशों ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत की। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विश्व को तीसरा मंच भी प्रदान किया।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही संसार एक ध्रुवीय हो चुका था। क्योंकि शीतयुद्ध खत्म हो चुका है, जिस कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन बना था। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि जब विश्व में गुटबंदी समाप्त हो गई है तो फिर गुट निरपेक्ष आन्दोलन का क्या उद्धेश्य रह गया है, जब शीत-युद्ध समाप्त हो चुका है तो निर्गुट आन्दोलन की भी क्या जरूरत है? कर्नल गद्दाफी (लीबिया के नेता) ने गुटनिरपेक्षता के 8वें सम्मेलन में जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता पर प्रश्न करते हुए निर्गुट आन्दोलन को अन्तर्राष्ट्रीय भ्रम का मजाकिया आन्दोलन कहा था। फरवरी 1992 में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों की बैठक में मिस्र ने स्पष्ट तौर पर अपील की थी कि सोवियत संघ के विघटन, सोवियत गुट तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है, परंतु बहुसंख्यक विदेश मंत्रियों ने इस विचार का विरोध किया।
इन देशों का कहना था कि गुटनिरपेक्ष देश अभी भी आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं और समृद्ध, राष्ट्रों और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उनका नव-औपनिवेशिक शोषण किया जा रहा है। इसलिए उनको इस स्थिति से बचाने और विकसित देशों पर दबाव डालने के लिए विकासशील देशों को एक मंच के रूप में निर्गुट आन्दोलन का हिस्सा होना आवश्यक है। उत्तर-दक्षिण संवाद को बनाए रखने, दक्षिण-दक्षिण सहयोग और नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को बनाने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन और (जी-77) G-77 को एक होकर कार्य करना होगा।
वर्तमान समय में निम्नलिखित मुद्दों पर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता नज़र आती है-
- नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की पुरजोर माँग करना।
- आणविक नि:शस्त्रीकरण के लिए दबाव डालना।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहन देना।
- एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अमरीकी दादागीरी का विरोध करना।
- विकसित तथा विकासशील देशों (उत्तर-दक्षिण संवाद) के बीच सार्थक वार्ता के लिए दबाव डालना।
- अच्छी वित्तीय स्थिति वाले गुटनिरपेक्ष देशों (जैसे ओपेक राष्ट्रों) को इस बात के लिए तैयार करना कि वे अपना अधिशेष पश्चिमी देशों के बैंकों में जमा करने की बजाय विकासशील देशों में विकासात्मक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करें।
- नव-औपनिवेशिक शोषण का विरोध किया जाए।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन के लिए दबाव डाला जाए ताकि अन्य शक्तिशाली देशों को भी स्थायी सदस्यता अर्थात 'वीटो' परिषद् की सदस्यता प्रदान की जाए।
- बदलती हुई अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का सम्बन्ध मुख्यत: पाँच ‘D’ से रहा है। उपनिवेशीकरण (Decolonisation), विकास (Development), तनाव–शैथिल्य (Detente),निरस्त्रीकरण (Disarmament) और लोकतन्त्रीकरण (Democratisation) | अशान्त और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित विश्व में यह एक सुरक्षा नली हैं।
सीबीएसई कक्षा -12 राजनीति विज्ञानमहत्वपूर्ण प्रश्नपाठ-1शीत युद्ध का दौर
एक अंकीय प्रश्न:-
निम्न वाक्य सही करके लिखो:
1. अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ 1955 में वारसा की सन्धि की।
उत्तर: सोवियत संघ ने अपने सहयोगियों के साथ 1955 में वारसा की संधि की।
2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किन दो महाशक्तियों का उदय हुआ?
उत्तर: अमेरिका और सोवियत संघ
3. तीसरे विश्व के नाम से किन देशों को जाना जाता है?
उत्तर: गुट निरपेक्ष आंदोलन में शामिल देश
4. गुट निरपेक्ष देशों का 15 वां सम्मेलन कहां हुआ?
उत्तर: गुट निरपेक्ष देशों का 15वां सम्मेलन मिस्र में हुआ।
5. उन देशों का नाम लिखों जो पहले वारसा संधि में शामिल थे और अब यूरोपीय संघ के सदस्य है?
उत्तर: हंगरी और पोलैण्ड
6. धुरी देशों में कौन देश शामिल थे?
उत्तर: जर्मनी, इटली व जापान
7. गुटनिरपेक्ष देशों का 15वां सम्मेलन कब व कहां हुआ।
उत्तर: जुलाई 2009, मिस्र के शर्मअल शेख शहर में हुआ।
दो अंकीय प्रश्न:-
1. अमेरिका ने कब जापान के दो शहरों पर परमाणु बन गिराये?
उत्तर: अगस्त 1945 हिरोशिमा और नागासाकी।
2. यूरोप के देश किस प्रकार महाशक्तियों से जुड़े?
उत्तर: पश्चिम यूरोप के अधिकांश देश अमेरिका के साथ।
पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत संघ के साथ।
पूर्वी यूरोप के अधिकांश देश सोवियत संघ के साथ।
3. उन तीन नेताओं के नाम बताओं जिनके प्रयासों से गुटनिरपेक्षता का जन्म हुआ?
उत्तर: भारत के जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के नासिर व यूगोस्लाविया के व्राज टीटों।
4. छोटे देश महाशक्तियों के गुट में किस कारण शामिल हुए?
उत्तर: अपनी सुरक्षा व महाशक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए।
5. गुट निरपेक्षता से भारत को क्या लाभ हुआ?
उत्तर: इससे अन्तर्राष्ट्रीय निर्णय लेने आसान हुए।
6. निशस्त्रीकरण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर: विनाशकारी हथियारों का निर्माण न करना व उन पर नियंत्रण रखना।
7. शीतयुद्ध के दो गुटों के अगुआ देश तथा उनकी विचारधराओं के नाम लिखो।
उत्तर: (1) संयुक्त राज्य अमरीका - *लोकतांत्रिक उदार पूंजीवादी।
(2) सोवियत संघ - साम्यवादी (समाजवादी)
8. शीतयुद्ध से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर: यह ऐसी अवस्था है जब दो या अधिक देशों के बीच भय, अनिश्चय, असुरक्षा, कूटनीतिक दांवपेंच, वैचारिक घृणा, एक-दूसरे को नीचा दिखाकर अपनी श्रेष्ठता दिखाने का वातावरण हो। इसमें युद्ध की सम्भावना बनी रहती है। इसमें संचार साधनों द्वारा अपनी श्रेष्ठता का प्रचार किया जाता है।
9. शीतयुद्ध के संदर्भ में अपरोध (रोक व संतुलन) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: दोनों महाशक्तियों में एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की क्षमता है कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहेगा इसी कारण पारस्परिक अपरोध के कारण युद्ध नहीं हुआ।
10. क्या आप मानते है कि गुटनिरपेक्षता की नीति पलायन की नीति नहीं है। सिद्ध करो।
उत्तर: गुट निरपेक्षता का अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर महाशक्तियों से अलग रहना तथा सही गलत का निर्णय स्वयं करना था न कि सक्रिय रहकर मतभेद बढ़ाना।
11. द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र देशों के गुट में कौन से देश शामिल थे?
उत्तर: अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, प्रफांस, चीन, ब्राजील आदि।
12. क्यूबा संकट के समय अमेरिका व सोवियत संघ का नेतृत्व कौन-कौन से नेता कर रहे थे?
चार अंकीय प्रश्न:-
1. महाशक्तियां छोटे देशों के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखती थीं?
2. सोवियत संघ के प्रति भारत की विदेश नीति पर टिप्पणी करें?
3. भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना क्यों की गई?
4. स्पष्ट करें कि गुटनिरपेक्षता का अर्थ पृथकतावाद नहीं होता?
5. ‘‘भारत की विदेश नीति न तो नकारात्मक थी और न ही निश्क्रियता की’’ प्रस्तुत कथन को स्पष्ट करें?
6. स्पष्ट करें कि क्यूबा मिसाइल संकट शीतयुद्ध का चरम बिंदु था?
छः अंकीय प्रश्न:-
1. प्रक्षेपास्त्रों को कम करने के उद्देश्य से किए गए समझौते व संधियों का वर्णन करे?
2. नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का वर्णन करें?
3. शीतयुद्ध की उत्पत्ति के प्रमुख कारणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें?
4. गुटनिरपेक्ष सम्मेलनों के इतिहास का वर्णन करें?
5. ‘वैश्विक राजनीति में गुटनिरपेक्षता एक सराहनीय प्रयास था विश्व को एकजुट करने के लिए’ - स्पष्ट करें।
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