पुनरावृति नोटस
पाठ-2 दो ध्रुवीयता का अंत
स्मरणीय तथ्य-
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीतयुद्ध के दौरान विश्व दो भागों-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ-में विभाजित हो गया था, इसलिए विश्व द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित हो गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था में बदलने से अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर काफी प्रभाव पड़ा।
- 1945 से 1955 तक विश्व में कठोर द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था कायम रही जो 1960 के दशक में लघु ध्रुवीय व्यवस्था में बदल गई। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के उदय तथा कई देशों की तटस्थता ने विश्व को बहु-ध्रुवीय व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया।
- समाजवादी सोवियत गणराज्य (यू.एस.एस.आर.) रूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद अस्तित्व में आया था।
- अमरीका को छोड़कर शेष विश्व से सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था, संचार-प्रणाली काफी उन्नत अवस्था में थी। सोवियत संघ के पास बड़ी मात्रा में विशाल ऊर्जा साधन, खनिज तेल, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी उपलब्ध थे।
- 1917 के बाद से ही सोवियत संघ में केवल एक दल कम्यूनिस्ट पार्टी का शासन था। सोवियत संघ अन्य 15 गणराज्यों कों मिलाकर बनाया गया था।
- 1980 के दशक में दोनों महाशक्तियों में शक्ति के लिए संघर्ष के चलते हथियारों की दौड़ चल रही थी। सारा ध्यान परमाणु हथियार बनाने में था, इसलिए अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव पड़ा। वहीं मिखाइल गोर्बाचेव की खुलेपन की नीति के कारण भी सोवियत संघ का विघटन माना जाता है।
- मिखाइल गोबचेव ने पेरेस्त्रतोइका तथा ग्लासनोस्त के नाम से आर्थिक और राजनीतिक सुधार लागू किए।
- मिखाइल गोर्बाचेव ने अर्थव्यवस्था को सुधारने में पश्चिम की बराबरी की तथा प्रशासन में ढील ने सभी गणराज्यों को अलग राज्य की माँग को बढ़ावा दिया। सभी राज्यों में राष्ट्रवादी और सम्प्रभुता की भावनाएँ उभरने लगीं।
- सोवियत संघ के कुछ गणराज्य खासकर बाल्टिक और पूर्वी यूरोप के देश यूरोपीय संघ और नाटो के सदस्य बनना चाहते थे।
- 1989 के शीतयुद्ध के मुख्य केंद्र जर्मनी की दीवार गिराकर पश्चिमी व पूर्वी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
- इन्हीं सब कारणों से 1990 में सोवियत संघ का पतन हो गया। अब वह इस हालत में नहीं था कि सभी गणराज्यों को नियन्त्रित कर सके तथा सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था भी काफ़ी खराब थी।
- सोवियत संघ के पतन के बाद साम्यवादी देशों ने आर्थिक विकास के लिए 'पूँजीवाद की ओर संक्रमण' का एक खास मॉडल अपनाया, जिसे विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने शॉक थेरेपी के नाम से बुलाया।
- 1991 में यूगोस्लाविया का भी पतन हो गया और यह कई प्रांतों में बँट गया, जिन्होंने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
- मध्य एशिया का संपूर्ण क्षेत्र 2001 तक संघर्ष और तनाव का मुख्य केन्द्र बना रहा।
- रूस के सभी गणराज्यों ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली थी। ताज़िकिस्तान में 10 वर्षों (2001) तक गृहयुद्ध चलता रहा।
- उज़्बेकिस्तान में हिंदी फिल्मों की धूम रहती है। इसी कारण वे भारतीय लोगों को पसंद करते हैं और एक खासी संस्कृति का निर्माण होता है। उज़्बेकिस्तानवासी हिंदी फिल्मों के दीवाने हैं।
- रूस तथा पूर्व सोवियत संघ के सभी गणराज्यों में हिंदी फिल्मों के नायक (जैसे-राजकपूर इत्यादि) घर-घर में जाने जाते हैं।
- रूस और भारत बहुध्रुवीय विश्व का निर्माण करना चाहते हैं। भारत रूस के हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश हैं।
- भारत और रूस के बीच सामरिक समझौते से दोनों के संबंध काफी अच्छे बन गए हैं। हथियारों की खरीद, व्यापार, अंतरिक्ष, उद्योग, परमाणिक योजना जैसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ दोनों के मध्य संबंधों की गहनता को देखा जा सकता है।
- शीतयुद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बंट गया, एक गुट का नेता अमेरिका और दूसरे गुट का नेता सोवियत संघ था। 25 दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ द्विध्रुवीयता का अंत हुआ और अमेरिका विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा।
- बर्लिन की दीवार पूंजीवादी व साम्यवादी दुनिया के बीच विभाजन का प्रतीक थी। 1961 में बनी इस दीवार को 9 नवंबर, 1989 को तोड़कर पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण कर दिया गया।
- सोवियत प्रणाली-योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था व राज्य द्वारा नियंत्रित, साम्यवादी दल के अलावा अन्य राजनीतिक दल के लिए जगह नहीं, संचार प्रणाली उन्नत पर सरकार का एकाधिकार, बेरोजगारी नहीं, नौकरशाही का सख्त शिकंजा, नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं, सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर की प्राप्ति। 1970 के दशक के अंत में सोवियत व्यवस्था लड़खड़ा गई थी।
दूसरी दुनिया- पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया। - मिखाईल गोर्बाचोव, जो 1980 के दशक के मध्य में USSR की साम्यवादी पार्टी के अध्यक्ष बनें, ने देश के अंदर आर्थिक, राजनीतिक सुधारों तथा लोकतंत्राीकरण की नीति चलाई।
- सोवियत संघ के भीतर संकट गहराता गया, विघटन की गति तेज हुई व दिसम्बर 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में इसके तीन बड़े गणराज्यों रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। स्वतंत्र राज्यों का राष्ट्रकुल (Common wealth of Independent States – CIS) बना। अब विश्व परिदृश्य पर 15 नए गणराज्य सामने आए।
सोवियत संघ के विघटन के कारण-
- नागरिको की राजनीतिक और आर्थिक आंकाक्षाओं को पूरा न कर पाना।
- सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा।
- कम्युनिस्ट पार्टी का अंकुश।
- गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध होना।
- अर्थव्यवस्था गतिरूद्ध व उपभोक्ता वस्तुओं की कमी।
- राजनीतिक आर्थिक संस्थाएं आंतरिक कमजोरियों के कारण जनता की आकांक्षाएं पूरी नहीं कर सकी।
- संसाधनों का अधिकांश हिस्सा परमाणु हथियारों व सैन्य सामान पर खर्च।
- नागरिकों को जानकारी हो गई कि सोवियत राजव्यवस्था व अर्थव्यवस्था पश्चिमी पूंजीवाद से बेहतर नहीं।
- गतिरुद्ध प्रशासन, भ्रष्टाचार, सत्ता का केन्द्रीयकरण।
- राष्ट्रवादी भावनाओं व संप्रभुता की इच्छाओं का उभार।
- रूस की प्रमुखता।
सोवियत संघ के विघटन के परिणाम-
- शीतयुद्ध के दौर के संघर्ष की समाप्ति
- एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमेरिकी वर्चस्व का उदय।
- हथियारों की होड़ की समाप्ति
- सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
- रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
- विश्व राजनीति में शक्ति सम्बन्धों में बदलाव व विश्व के एक ध्रुवीय होने की संभावना।
- विश्व परिदृश्य पर नए देशों का उदय।
- समाजवादी विचारधार पर प्रश्नचिन्ह या पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
शॉक थेरपी - अर्थ-
- इसका शब्दिक अर्थ आघात पहुंचाकर उपचार करना था। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य व पूर्वी यूरोप के देशों की साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर बदलने की प्रक्रिया थी। यह खास मॉडल विश्व बैंक व अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिया गया। यह मॉडल सफल नहीं हुआ व जनता को उपभोग के आनंदलोक तक नहीं ले गया।
शॉक शेरेपी की विशेषताएँ:-
- मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व।
- राज्य की संपदा का निजीकरण।
- सामूहिक फार्म की जगह निजी फार्म।
- मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
- मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
- पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
पूँजीवादी के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।
शॉक थेरेपी के परिणाम:-
- पूर्णतया असफल, रूस का औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया।
- रुसी रूबल मुद्रा में गिरावट।
- समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट।
- आर्थिक असमानता बढ़ी।
- माफिया वर्ग का उदय।
- लोकतांत्रिक संस्थानों का निर्माण प्राथमिकताओं के आधार पर नहीं।
- वित्तीय संस्थान व इंकाम जैसे बैंक दिवालिया, इसे इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल कहा गया।
- कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन।
संघर्ष व तनाव के क्षेत्र- पूवं सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है। इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है। रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले। चेकोस्लोवाकिया दो भागों - चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया।
बाल्कन क्षेत्र:- वाल्कन गणराज्य युगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में वैट गया। जिसमें शामिल बोस्निया - हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र:- बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।
मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जीया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं।
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
बाल्कन क्षेत्र:- वाल्कन गणराज्य युगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में वैट गया। जिसमें शामिल बोस्निया - हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
बाल्टिक क्षेत्र:- बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।
मध्य एशिया के ताजिकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जीया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं।
मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत :-
- पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है।
- दोनों का सपना वहुध्रवीय विश्व का है।
- दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति, अंर्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।
- 2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भारत रूसी हथियारों का खरीददार।
- रूस से तेल का आयात।
- परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद।
- कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश।
- गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स (BRICS) सम्मलेन के दौरान रूस-भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।
मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियाँ:-
मिखाइल गोर्बाचेव ने 1985 में सोवियत संघ की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में सुधर के लिए निम्न तीन नीतियाँ अपनाई:
मिखाइल गोर्बाचेव ने 1985 में सोवियत संघ की शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में सुधर के लिए निम्न तीन नीतियाँ अपनाई:
- उस्कोरेनी (त्वरण):- अर्थव्यवस्था की वृद्धि को गुणात्मक दृष्टि से नई अवस्था की ओर ले जाना।
- परिस्त्रोइका (पुनर्गठन):- इसके द्वारा राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों पर बल दिया गया।
- ग्लासनोस्त (खुलापन):- नागरिकों को यह अधिकार दिया गया कि वे सार्वजनिक विषयों के बारे में खुलकर विचार विमर्श करे।
सोवियत संघ के प्रमुख नेता और उनका कार्यकाल-
- ब्लादीमीर लेनिन (1870-1924): रूस की बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक (1917-1924)
- जोजेफ स्टालिन (1879-1953): लेनिन के उत्तराधिकारी (1924-1953)
- निकिता खु्रश्वेच (1894-1971): सोवियत संघ के राष्ट्रपति (1964-1982)
- लिओनिड ब्रेझनेव (1906-1982): सोवियत संघ के राष्ट्रपति (1964-1982)
- मिखाइल गोर्बाचेव (जन्म 1931): सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति (1985-1991)
- बोरिस येल्तसिन (जन्म 1931): सोवियत संघ के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति (1991-1999)
Class 12 राजनीति विज्ञानएनसीईआरटी प्रश्न-उत्तरपाठ-2दो ध्रुवीयता का अंत
1. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) सांवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियन्त्रण होना।
(ग) जनता की आर्थिक आज़ादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
(क) सांवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियन्त्रण होना।
(ग) जनता की आर्थिक आज़ादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियन्त्रण राज्य करता था।
उत्तर- (ग) जनता कों आर्थिक आज़ादी थी।
2. निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ?
(क) अफगान-संकट
(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रांति
(क) अफगान-संकट
(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रांति
उत्तर-
- (घ) रूसी क्रांति
- (क) अफगान संकट
- (ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
- (ग) सोवियत संघ का विघटन
3. निम्नलिखित में से कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट
उत्तर- (घ) मध्यपूर्व में संकट
(1) मिखाइल गोर्बाचेव | (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी |
(2) शॉक थेरेपी | (ख) सैन्य समझौता |
(3) रूस | (ग) सुधारों की शुरुआत |
(4) बोरिस येल्तसिन | (घ) आर्थिक मॉडल |
(5) वारसा | (ड) रूस के राष्ट्रपति |
उत्तर-
(1) मिखाइल गोर्बाचेव | (ग) सुधारों की शुरुआत |
(2) शॉक थेरेपी | (घ) आर्थिक मॉडल |
(3) रूस | (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी |
(4) बोरिस येल्तसिन | (ड) रूस के राष्ट्रपति |
(5) वारसा | (ख) सैन्य समझौता |
5. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली ...... की विचारधारा पर आधारित थीं।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबंधन......था |
(ग) ...... पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) ...... ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ड़) ...... का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली ...... की विचारधारा पर आधारित थीं।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबंधन......था |
(ग) ...... पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) ...... ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ड़) ...... का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।
उत्तर- (क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली समाजवाद की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन वारसा पैक्ट था।
(ग) साम्यवादी (कम्युनिस्ट) पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) मिखाइल गोबाचेव ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ड़) बर्लिन दीवार का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबन्धन वारसा पैक्ट था।
(ग) साम्यवादी (कम्युनिस्ट) पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) मिखाइल गोबाचेव ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ड़) बर्लिन दीवार का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।
6. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमरीका की अर्थव्यस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर- निम्न विशेषताओं के कारण सोवियत अर्थव्यवस्था अमरीकी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था से अलग थी-
सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी थी, जिसमें सभी नियंत्रण राज्य के हाथ में होता था,लेकिन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में नियन्त्रण निजी हाथों में होता है।
सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध तथा राज्य के नियन्त्रण में थी, लेकिन पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में नियन्त्रण निजी कपनियों तथा उद्यमियों के हाथों में होता हैं।
सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी थी, जबकि अमरीकी अर्थव्यवस्था पूँजीवादी है।
सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था योजनाबद्ध तथा राज्य के नियन्त्रण में थी, लेकिन पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में नियन्त्रण निजी कपनियों तथा उद्यमियों के हाथों में होता हैं।
सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी थी, जबकि अमरीकी अर्थव्यवस्था पूँजीवादी है।
7. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ के सुधार के लिए बाध्य हुए?
अथव
ऐसे कौन-से कारण थे, जिन्होंने गोर्बाचेव को सोवियत संघ में सुधार लाने के लिए बाध्य किया? वर्णन कीजिए।
उत्तर- निम्न कारणों ने गोबाचेव को सोवियत संघ में सुधार लाने के लिए बाध्य किया :
- सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली पर नौकरशाही का शिकंजा कसता चला गया, जिससे सोवियत प्रणाली सत्तावादी होती गई और नागरिकों का जीवन मुश्किल होता चला गया।
- सोवियत समाजवादी व्यवस्था में लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनने (लोकतंत्र) तथा विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी। इसलिए लोग पश्चिमी देशों की तरह आकर्षित थे।
- सोवियत संघ में सिर्फ एक दल, साम्यवादी दल का प्रभुत्व था। इस दल का सभी संस्थाओं पर गहरा अंकुश था। यह दल जनता के प्रति उत्तरदायी भी नहीं था।
- सोवियत संघ में 15 गणराज्य शामिल हुए लेकिन सारे विषयों पर रूस का प्रभुत्व बनाकर रखा था। इसलिए शेष क्षेत्रों की जनता स्वयं को दमित तथा उपेक्षित महसूस करती थी।
- हथियारों की होड़ में अमरीका की बराबरी करने के कारण सोवियत संघ प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे (जैसे-परिवहन, ऊर्जा आदि) में पश्चिमी देशों से पीछे रह गया।
- सोवियत संघ अपने नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं को भी पूरा नहीं कर सका।
- 1979 के अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप ने सोवियत संघ की व्यवस्था को और भी कमजोर बना दिया।
- उत्पादकता और प्रौद्योगिकी में पिछड़ जाने के कारण उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई, जिससे आयात में वृद्धि हुई।
- बेरोजगारी बढ़ गई थी। इससे व्यवस्था लड़खड़ा गई थी।
8. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
अथवा
सोवियत संघ के विघटन के परिणामों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर- सोवियत संघ के विघटन से विश्व राजनीति में काफी महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। सोवियत संघ के विघटन के परिणाम निम्न हैं-
- द्वि-ध्रुवीय व्यवस्था अब एक-ध्रुवीय व्यवस्था में रूपांतरित हो गई। अब केवल संयुक्त राज्य अमरीका ही महाशक्ति के रूप में रह गया था।
- शीतयुद्ध का समापन हो गया था, क्योंकि सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। अब कोई दूसरी महाशक्ति विश्व में नहीं रही थी।
- शीतयुद्ध की समाप्ति ने हथियारों की होड़ को समाप्त कर दिया था तथा विश्व में शांति और सुरक्षा की संभावना बढ़ने लगीं।
- सोवियत संघ के विघटन के पश्चात अमरीका के ऊपर आर्थिक रूप से विकासशील देशों की निर्भरता बढ़ी है।
- अमरीका ने विकासशील देशों को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था बनाय रखने पर बल दिया।
- सोवियत संघ के विघटन के पश्चात विकासशील देशों, जैसे- अफगानिस्तान, ईरान, इराक आदि में अमरीका का अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ गया।
- विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमरीकी प्रभुत्व कायम हो गया है।
- भारत जैसे देशों को अप्रत्यक्ष रूप से अमरीका से मदद लेने के लिए अमरीकी नीतियों का समर्थन करना पड़ता है।
- उदारवादी लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था विकासशील देशों के लिए सर्वश्रेष्ठ धारणा के रूप में उभर कर सामने आई।
- इस तरह हम कह सकते हैं कि सोवियत संघ के विघटन का सारा विश्व विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों पर बहुत प्रभाव पड़ा। सोवियत संघ में समाजवादी व्यवस्था के विघटन के बाद कई साम्यवादी देशों में भी समाजवाद का विघटन हो गया, जैसे यूगोस्लाविया का विघटन। अन्य साम्यवादी देशों में भी परिवर्तन की माँग उठने लगी। विश्व के अधिकतर देश अमरीकी पूँजीवादी व्यवस्था का समर्थन करने लगे।
9. 'शॉक थेरेपी' क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?
अथवा
‘शॉक थेरेपी' से आप क्या समझते हैं? उत्तर साम्यवादी सत्ताओं पर इसके परिणामों का परीक्षण कीजिए।
अथवा
‘शॉक थेरेपी' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस, मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों ने साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण के लिए एक विशेष मॉडल बनाया। विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को शॉक थेरेपी नाम दिया गया अर्थात् आघात पहुँचाकर उपचार करना। शॉक थेरेपी में सबसे पहलू था मुख्य निजी स्वामित्व का होना। शॉक थेरेपी के द्वारा राज्य की संपदा के निजीकरण तथा व्यावसायिक ढाँचे को उसी समय अपनाने की बात की गई, जिसके द्वारा 'सामूहिक फार्म' को 'निजी फार्म' में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती आरंभ की गई।
अधिक-से-अधिक व्यापार करके विकास के लिए मुक्त व्यापार को अपनाया गया। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन तथा मुद्राओं का आपसी परिवर्तन भी महत्वपूर्ण है। इस संक्रमण काल में सोवियत खेमें के देशों के बीच व्यापारिक गठबन्धनों को समाप्त करके सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया।
साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण करने का यह तरीका सही नहीं था, क्योंकि साम्यवादी व्यवस्था के स्थान पर पूँजीवादी व्यवस्था को तुरन्त कायम कर देने से यह व्यवस्था असफल हो गई, क्योंकि जनता को समाजवादी व्यवस्था की आदत पड़ चुकी थी। वे 72 साल के साम्यवाद में जीते आ रहे थे। परिवर्तन आराम-आराम से होने चाहिए, जिसके सकारात्मक परिणाम निकलें और जनता भी धीरे-धीरे परिवर्तन की स्वीकार कर लें।
साम्यवादी सत्ताओं पर शॉक थेरेपी के निम्न परिणाम सामने आए:
- पूर्व सोवियत संघ (रूस) का राज्य द्वारा नियन्त्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा गया, क्योंकि लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों में या कंपनियों को बेच दिया गया। इसे 'इतिहास की सबसे बड़ी गराज-सेल' कहा गया।
- महा-बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार पत्र दिए गए थे,जबकिअधिकतर नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों में बेच डाले, क्योंकि उन्हें धन की जरूरत थी।
- रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में गिरावट से लेागों की जमापूँजी जाती रही।
- सामूहिक खेती प्रणाली समाप्त होने से खाद्यान्न सुरक्षा मौजूद नहीं रही और खाद्यान्न का आयात करना पड़ा।
- 1999 का सकल घरेलू उत्पाद 1959 की तुलना में नीचे आ गया।
- पुराना व्यापारिक ढाँचा टूट गया था, लेकिन व्यापार की कोई नई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी।
- एक माफिया वर्ग उभर कर आया, जिसने आर्थिक गतिविधियों को अपने नियन्त्रण में ले लिया।
- अमीर तथा गरीब लोगों के बीच अंतर बढ़ने लगा, जिससे आर्थिक असमानता आई।
- जल्दबाजी में संविधान तैयार करके राष्ट्रपति को कार्यपालिका प्रमुख बनाकर सभी शक्तियाँ उसे दे दीं और संसद कमजांर सस्था बनकर रह गई।
- इस प्रकार परिणामों को देखकर हम कह सकते हैं कि साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण धीरे-धीरे होना चाहिए था ताकि व्यवस्था में तुरन्त परिवर्तन को सहजता से अपनाया जा सके। इसके दूरगामी परिणाम निकलें और अर्थव्यवस्था को काफी गहरी ठेस पहुँची। राष्ट्रपति तानाशाह बनकर शक्तियों का प्रयोग कर सकता था।
10. निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें- ‘‘दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश-नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।”
उत्तर- सोवियत संघ के विघटन के पश्चात भी भारत को अपनी विदेश-नीति बदलने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि शीतयुद्ध काल में भारत ने गुटनिरपेक्ष रहते हुए दोनों ही देशों से आर्थिक मदद के बिना किसी पूर्व शर्त के प्राप्त की। भारत की गुटनिरपेक्षता की अमरीका ने भी मान्यता ही दी। भारत और सोवियत संघ के संबंध शुरू से ही अच्छे रहे हैं। चूँकि रूस पूर्व सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य है, इसलिए भी सोवियत संघ के विघटन से दोनों देशों के संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वर्ष 2001 में भारत-रूस सामरिक समझौते के रूप में भारत और रूस के मध्य 30 द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए हैं। भारत रूस के हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार देश हैं। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात भारत को अपनी विदेश-नीति की परिवर्तित कर लेना चाहिए।
पक्ष में तर्क
- अमरीका एक पूँजीवादी देश हैं और भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था। अमेरिका ने सदैव भारत की मदद की है-आर्थिक रूप से भी और औद्योगिक विकास में भी।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद अमरीका ही महाशक्ति के रूप में रह गया है। सुरक्षा के लिए हमें अमरीका गुट में चले जाना चाहिए।
- अमरीकी की अर्थव्यवस्था अच्छी है और साथ ही परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र है, इसलिए भारत को पूर्व सोवियत संघ की मित्रता छोड़कर अमरीका के साथ मित्रता कर लेनी चाहिए।
- भारत को स्वतंत्र करने के लिए अमरीका द्वारा ब्रिटेन पर दबाव डाला गया था। तभी भारत को स्वाधीनता मिली थी।
- अमरीका के पास सैन्य संगठन (नाटो) भी है, जो जरूरत पड़ने पर हमारी सहायता कर सकता है।
- आतंकवाद भारत तथा अमरीका जैसे देशों की समस्या है।
विपक्ष में तर्क
- सोवियत संघ की 1917 की क्रांति का भारत पर बहुत प्रभाव पड़ा, तभी भारत ने स्वयं को समाजवादी गणराज्य घोषित किया।
- सोवियत संघ ने 1947 में स्वतन्त्रता के पश्चात भारत के आर्थिक तथा तकनीकी विकास में बहुत मदद की।
- भारत को अन्तररिक्ष में पहुँचने के लिए सोवियत संघ ने तकनीक देकर मदद की है। 'आर्यभट्ट' और 'ऐपल' सोवियत संघ की मित्रता के प्रतीक हैं।
- सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस के साथ भारत के पहले जैसे मैत्री संबंध रहे हैं।
- कारगिल-युद्ध में रूस ने भारत का समर्थन किया। 7 दिसंबर, 1999 को भारत व रूस ने एक दस वर्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- भारत के प्रधानमंत्रियों ने कई बार रूस की यात्रा की तथा रूस के राष्ट्रपति भारत भी आए। 7 दिसंबर, 2009 की प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह और रूसी राष्ट्रपति दमिति मेदवेदेव ने जिन समझौतों पर दस्तखत किए उनमें परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए आपसी सहयोग का एक समझौता है।
- आतंकवाद के मुद्दे पर रूस ने भारत का समर्थन किया।
- इस तरह हम कह सकते हैं कि सोवियत संघ के बिखराव के बाद भी भारत के साथ रूस के संबंध पूर्व सोवियत संघ जैसे ही बने हुए हैं। अमरीका हमेशा दोहरी नीति अपनाता हैं-भारत व पाकिस्तान दोनों के साथ संबंध बनाए हुए हैं। कई बार अमरीका ने भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की सैनिक सहायता व हथियार सामग्री दी हैं, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध किया हैं। ऐसी स्थिति में भारत को अपने देश की सुरक्षा तथा आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर विदेश नीति का निर्माण करना होगा। इसलिए भारत के संबंध न तो अमरीका के साथ शत्रुतापूर्ण हैं जबकि सहयोगपूर्ण ही हैं तथा रूस के साथ अच्छे मैत्रीपूर्ण संबंध दोनों देशों की प्रधानता रही है।
कक्षा -12 राजनीति विज्ञानमहत्वपूर्ण प्रश्नपाठ-2दो ध्रुवीयता का अन्त
एक अंक वाले प्रश्न:-
1. द्विध्रुवीयता का अर्थ लिखिए।
इसका अंत कब हुआ?
उत्तर: शीतयुद्ध के दौरान विश्व का दो गुटों में बंटना जिससे शक्ति संरचना द्विध्रुवीय हो गई जिन्हें अमेरिका व सोवियत संघ का नेतृत्व प्राप्त हुआ।
2. बर्सिन की दीवार को कब गिराया गया?
उत्तर: 9 नवंबर 1989 को।
3. समाजवादी सोवियत गणराज्य कब अस्तित्व में आया?
उत्तर: 1917 की रूसी क्रांति के बाद।
4. ‘दूसरी दुनिया’ किसे कहा जाता है?
उत्तर: पूर्वी यूरोप के अनेक देशों ने अपनी सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था को सोवियत संघ की समाजवादी प्रणाली की तरह ढाला। इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहते हैं।
5. सोवियत संघ के अंदर आर्थिक सुधारों तथा लोकतंत्रीकरण की नीति चलाने वाला नेता कौन थे?
उत्तर: मिखाइल गोर्बाचेव
6. स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल अर्थात् CIS का पूरा नाम लिखिए?
उत्तर: Common Wealth of Independent states.
7. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति एक वाक्य में लिखिए?
उत्तर: योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था व उत्पादन वितरण के साधनों पर राज्य का नियंत्रण।
8. सोवियत संघ द्वारा नाटो (NATO) के विरोध में कब व कौन-सा सैन्य गठबंधन बनाया गया?
उत्तर: वारसा पैक्ट 1955 में।
9. सर्वप्रथम सोवियत संघ से अलग होने वाले गणराज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर: रूस व यूक्रेन।
10. सोवियत संघ की राजनीतिक व्यवस्था में किस एक दल का प्रभुत्व रहा था?
उत्तर: साम्यवादी दल।
11. पूर्वी यूरोप में चैकोस्लोवाकिया किन दो भागों में टूटा था?
उत्तर: चेक तथा स्लोवाकिया।
12. ‘शॉक थेरेपी’ का मॉडल किसके द्वारा निर्देशित था?
उत्तर: विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष।
13. 1991 के बाद युगोस्लाविया में से तीन प्रांतों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। किन्हीं दो का नाम लिखो।
उत्तर: स्लोवेनिया, क्रोएशिया।
दो अंक वाले प्रश्न:-
1. सोवियत प्रणाली की कोई दो मुख्य विशेषताएं लिखो?
उत्तर: योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था व राज्य द्वारा नियंत्रित सभी नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर की प्राप्ति।
2. 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में सोवियत व्यवस्था के लड़खड़ाने के दो कारण लिखिए?
उत्तर: नौकरशाही का सख्त शिकंजा नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति की आजादी नहीं आदि जिससे विरोध बढ़ता गया।
3. काल क्रमानुसार लिखेंः-
अफगान संकट, बर्लिन की दीवार का गिरना, सोवियत संघ का विघटन, रूसी क्रांति।
उत्तर: रूसी क्रांति, अफगान, संकट, बर्लिन दीवार का गिरना, सोवियत संघ का विघटन।
4. ‘शॉक थेरेपी’ को आप क्या समझते है?
उत्तर: इसका शाब्दिक अर्थ आघात पहुंचाकर उपचार करना था। रूस, मध्य एशिया के गणराज्य व पूर्वी यूरोप के देशों की साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर बदलने की प्रक्रिया थी। यह खास मॉडल विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिया गया। यह मॉडल सफल नहीं हुआ व जनता को उपयोग के आनंदसोक तक नहीं ले गया।
5. रिक्त स्थान भरिए:-
(क) 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरूआत .................... ने की।
(ख) शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक ....................... का गिरना माना गया।
उत्तर: मिखाइल गोर्बोचेव - बर्लिन दीवार का गिरना।
6. सुमेलित कीजिए-
शॉक थेरेपी - सोवियत संघ का उत्तराधिकारी
रूस - सैन्य समझौता
बोरिस येस्तसिन - आर्थिक मॉडल
वारसा - रूस के राष्ट्रपति
उत्तर: शॉक थेरेपी - आर्थिक मॉडल
रुस - आर्थिक संघ का उत्तराधिकारी
बोरिस येस्तासिन - रूस के राष्ट्रपति
वारसा - सैन्य समझौता।
7. ‘शॉक थेरेपी’ मॉडल को इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल क्यों कहा जाता है?
उत्तर: औद्योगिक ढांचा चरमरा गया, 90 प्रतिशत उद्योग निजी हाथों या कंपनियों को औन-पौने दामों में बेच दिए गए
चार अंकों वाले प्रश्न:-
1. स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (CIS) में कितने राज्य शामिल थे। प्रस्तुत मानचित्र के आधार पर प्रारंभ में शामिल कोई दो राज्य व 1993 में इसमें शामिल राज्य का नाम लिखें।
उत्तर: सोवियत अर्थव्यवस्था समाजवादी थी जिसमें कि योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था राज्य द्वारा नियंत्रित थी उत्पादन व वितरण के साधनों पर भी राज्य का नियंत्रण था जबकि अमेरिका में अर्थव्यवस्था पूंजीवादी थी जहां स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता व न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य का रूप दिखता था।
2. साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूंजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें।
व्यवस्था में एकदम ढील देते ही नागरिकों की अपेक्षाओं का ज्वार उमड़ पड़ा जिस पर काबू करना कठिन हो गया। कुछ के अनुसार गोर्बाचोव की कार्यपद्धति तेज नहीं थी, वे अपनी ही नीतियों का ठीक तरह से बचाव नहीं कर पाए।
3. गोर्बाचोव तो रोग का ठीक-ठीक निदान कर रहे थे और सुधारों को लागू करने का उनका प्रयास ठीक था फिर भी सोवियत संघ क्यों विघटित हुआ?
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें |
4. 1990 में अपनायी गई शॉक थेरपी जनता को उपभोग के उस आनंदलोक तक नहीं ले गई जिसका उसने वादा किया था इस कथन के संदर्भ में शॉक थेरेपी के परिणाम लिखें।
उत्तर: भारत ने उत्तर साम्यवादी देशों से अपने सम्बन्धों को नई दिशा दी। रूस के साथ संबंधें में कोई गिरावट नहीं आई हालांकि शक्ति संरचना बदलने से नई विश्व व्यवस्था में भारत ने स्वयं को ढाला है फिर भी वे मित्रवत व सहयोग पूर्ण बने हुए हैं। दोनों ही देश जानते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने से दोनों की ताकत बढ़ेगी। हालांकि अपने विकास के लिए भारत को परोक्ष रूप से अमेरिकी नीतियों का भी समर्थन करना पड़ रहा है क्योंकि एकमात्र महाशक्ति के रूप में वह विश्व राजनीति को प्रभावित कर रहा है।
5. सोवियत संघ के विघटन का भारत के साथ सम्बन्धों पर क्या प्रभाव पड़ा? स्पष्ट करें।
उत्तर: नहीं, परिवर्तन तुरन्त किए जाने की अपेक्षा धीरे-धीरे होने चाहिए। वहां की परिस्थितियां अचानक आघात सहन करने की नहीं थी।
6. क्या ‘शॉक थेरेपी’ साम्यवाद से पूंजीवाद की तरफ संक्रमण का सबसे बेहतर तरीका थी।
उत्तर: एक विचारधरा के रूप में समाजवाद अभी भी कायम व सोवियत संघ का टूटना इस व्यवस्था का अन्त नहीं। बदलते समय व परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालकर अभी भी विश्व के कई देशों में यह व्यवस्था कायम है।
7. सोवियत संघ का अंत समाजवाद का अंत नहीं है। स्पष्ट कीजिए?
उत्तर: सोवियत संघ के प्रति राष्ट्रवादी असंतोष यूरोपीय व अपेक्षाकृत समृद्ध गणराज्यों रूस, यूक्रेन में अधिक था। यहां के लोग मध्य एशियाई गणराज्यों से स्वयं को अलग महसूस कर रहे थे यह भी भावना थी कि पिछड़े इलाकों को सोवियत संघ में रखने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।
छः अंकों वाले प्रश्न:-
1. द्विध्रुवीयता के अंत अर्थात सोवियत संघ के विघटन के परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखं।
2. पूर्व सोवियत संघ में हुए ‘संघर्ष व तनाव’ पर निबन्धत्मक रूप में विचार लिखिए।
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें। तथा विस्तार से लिखें।
3. पूर्व साम्यवादी देशों व भारत के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें। तथा विस्तार से लिखें।
4.क्या आप मानते है कि दूसरी दुनिया के विघटना के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए तथा रूस जैसे परंपरागत मित्र की जगह अमेरिका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए?
उत्तर: भारत को अपने राष्ट्रीय व वैदेशिक हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका से भी सम्बन्ध मधुर करने चाहिए परन्तु उसका परंपरागत मित्र रूस, हमेशा उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरा है यह भी नहीं भूलना चाहिए। अतः पूर्णतः विदेश नीति न बदल कर विकास के लिए अमेरिका के साथ चलना चाहिए।
5. आपकी दृष्टि में सोवियत प्रणाली क्या एक आदर्श व्यवस्था थी या आप उसे असफल प्रणाली की संज्ञा देंगे। एक महाशक्ति के रूप में उभरने के बाद भी सोवियत व्यवस्था की कमियां क्या थीं?
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें व विस्तार से लिखें।
6. ‘सोवियत संघ अब नहीं रहा, वह अब दफन हो चुका था’ इस कथन के संदर्भ में सोवियत संघ के विघटन के कारण लिखिए?
उत्तर: स्मरणीय बिन्दु देखें।
3 Comments
द्विध्रुवीयता के अंत अर्थात सोवियत संघ के विघटन के परिणामों का वर्णन कीजिए .
ReplyDeleteuper paragraph me soviet sangh ke karan read kariye you will get all answers
DeleteB
ReplyDeleteHARAT OR RUS KE AAPASI SAMBNDHO SE BHARAT KIS PRAKAR LABHANVIT HUAA HAI